
शीश झूके पाँव माई - विद्या शंकर विद्यार्थी
शीश झूके पाँव माई लेके तोहार नाव माई ममता से दूजा का बाटे सरधा से पूजा का बाटे चलत रहे बनाव माई लेके तोहार नाव माई । जेकर बाडी़ दुर्गा मा...
शीश झूके पाँव माई लेके तोहार नाव माई ममता से दूजा का बाटे सरधा से पूजा का बाटे चलत रहे बनाव माई लेके तोहार नाव माई । जेकर बाडी़ दुर्गा मा...
मैना के अगिला अंक (वर्ष - 7 अंक - 120 अक्टूबर - दिसम्बर 2020) चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह ‘आरोही’ जी पऽ केन्द्रित रही। लेखक आ रचनाकार लोग से स...
गनिया टमटम उडबले चल जात रहे। टमटम ढकर-ढकर करत रहे। ओकर पार्ट-पूजा बुझात रहे कि अलग-अलग हो जाई। सड़कि उभड़-खाभड़ रहे। टमटम पर बइठल डाक्टर मने...
कहाँ हमसे कुछऊ बतावल गइल बा सही बात हरदम छुपावल गइल बा। मोहब्बत के नागिन गइलि काटी के जब जहर देके हमके जियावल गइल बा। जवन आग सीना के भीतर लग...
आजकल दिन बेरुखा बा धूप बोझिल अनमनी। साँस के आवारगी में चिंतना के रहजनी। पेड़ के छाँही सकोचल धूँध अइसन बढ़ रहल। आँखि के पुतरी प चिनगी ओठ पर ब...
जहाँ मेढ़िये खेतवा चरि जाला का करिहें भइया रखवाला। जहाँ नदिये पानी पी जाई, जहाँ फेड़वे फलवा खा जाई, जहवाँ माली गजरा पहिरे ऊ फूल के बाग उजरि ...
नेता जी भर गर गेना का फूल के माला पहिनले, दुनू हाथ जोरले, मन्द- मन्द मुसुकात आगे- आगे चलत रहनीं। पीछे से कानफारू सुर में नारा लागत रहे। हमार...
विषय सूची संपादकीय 1. निष्काम कर्मयोगी 'विप्र' जी - 5 लेख 2. साहित्यिक मनीषी डॉ.विप्र जी- कन्हैया सिंह 'सदय' - 11 3. भोजपुरी...
हे माई! तनी फेरू एक बेर अपना आंचर के छांव में तनी सुता दऽ सुस्ताए दऽ। जीनगी के आपाधापी-घुड़दौड़ में पहिलका अस्थान पावे खातिर हकासल, पिआसल द...
अंक के रचनाकार (मैना: वर्ष - 7 अंक - 118-119 अप्रैल - सितम्बर 2020) संपादकीय काव्य अरुण शीतांश दिनेश पाण्डेय जयशंकर प्रसाद द्विवेदी केशव मोह...
सोशल मीडिया के दौर में भोजपुरी आठवीं सदी में नाथ संप्रदाय के संत चौरंगीनाथ से ले के आज इक्कीसवीं सदी ले भोजपुरी एगो भाखा के रुप में एक हजार...
अहो खेतवो अभी खाली बा देशवो अभी खाली बा कबले खाली रही मनवा हमार। मन में कईगो परानी बाड़ी जा लोग बाड़न उनकर भी मन खाली बा खाली बा खलिहान ओखर...
मरकिनौना कोरोना इहवाँ होरिया के रंग देखइबै हो मरकिनौना कोरोना भगइबै हो। कहवाँ डरबै रंग-अबीरवा अरे कहवाँ कुरता फरवइबै हो मरकिनौना कोरोना भगइब...
बाबू बिमार दवाई आइल ना कबले जीहें।1। ***** घर जमाई ससुरारे बसले माथा प घूर।2। ***** सावन भादो दिन बरसात के धान रोपाई।3। ***** झुला कजर...
पाती मिलल की जइसे भूलल थाती लिखल तहार मिलल जब पाती। रोजे रात निहारत रहनी हीते-नाते सबसे कहनी बहल लोर मोर साँझ-पराती। मन में, बहुते बिसवास...
घर -घर नाली, घर-घर गएस जेकर लाठी, ओकर भएस। बनी पकऊरा, बनी चाय इसकुल कउलेज, भाड मे जाए। छोट आमदी मे , मन के बात उधोग पति मे, धन के बात। घर -घ...
दरवाजे के घंटी बाजल दरवाजा खुलल त पाहुन अन्दर अईलन। अभी एक दुसरा से हाल..चाल पूछे के नैतिकता चलते रहे कि बीचे में ही शर्मा जी आपन मेहरी के आ...
इ सन् 1960 के बात ह। तब हम बनारस पढत रहलीं। वो दिन हम अपने कमरा मे पढले मे तल्लीन रहलीं कि तबले हमके बुझाइल कि केहू हमरे लगे आके ठाढ हो गइल ...
समय के चोट सुनले बानी, हम। कि देहात में जब कवनो मेहरारू के मरद के मन हो जाए त ई बात कह के ओह अबला बेचारी थूरे लागत रहे कि साग में हरदी काहे ...