बिसराम के दू गो कविता

आजु मोरी घरनी

आजु मोरी घरनी निकरली मोरे घर से,
मोरा फाटि गइले आल्हर करेज।

राम नाम सत सुनि मैं गइलों बउराई,
कवन रछसवा गइल रानी के हो खाई।

सुखि गइलें आंसु नाहीं खुलेले जबनिया,
कइसे के निकारों मैं तो दुखिया बचनिया।

आजु उनसे नाता टूटि गइलें मोरे भइया,
आजु मोरी छुटि गइली उनसे सगइया।

मोरी अहियन से उनकी चिता धुंधुंअइलीं,
चितवा पे सोवल रानी राखी हाई गइली।

कहै ‘बिसराम’ नाहीं धनी रहली राम,
रहलें चारि जना के परिवार।

ओही में से घात एक ठे कइले पापी देवा,
नाहीं कइलें मोरे गरीबी पर विचार।
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अइले बसन्त

अइले बसन्त महँकी फइललि बाय दिगन्त,
भइया धीरे-धीरे बहेली बयारि।

फुलैले गुलाब, फुलै उजरी बेइलिया,
अमवाँ के डरियन पर बोलैली कोइलिया।
बोलैले पपीहा मदमस्त आपन बोलिया,
महँकि लुटावैं आप ले बउरे के झोलिया।

उड़ि-उड़ि भवँरवा कलियन पै मंडरालै,
हउवा के संग मिलि कैपात लहरालै।
बढ़ि के लतवा पेड़वन से लपटाली,
उड़ि-उड़ि के खंजन अपना देसवा के जाली।

कहैं ‘बिसराम’ कुदरति भइली सोभाधाम,
चिरई गावत बाटी नदिया क तीर।
चलि-चलि बतास उनके यदिया जगावै,
मोरे मनवाँ में उठति बाटी पीर।।
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लेखक परिचय:-
नाम: बिसराम
जनम काल: लगभग 1920
जनम थान: आजमगढ़
मरन काल: 1947
विशेष: बिरहा

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