
बात बनउवल - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
मय दुनियाँ में कवि जी अउवल कविता हउवे बात बनउवल। गढ़ीं भले कवनों परिभाषा मंच ओर तिकवत भरि आशा गोल गिरोह भइया दद्दा साँझ खानि के पूरे अध्धा। क...
मय दुनियाँ में कवि जी अउवल कविता हउवे बात बनउवल। गढ़ीं भले कवनों परिभाषा मंच ओर तिकवत भरि आशा गोल गिरोह भइया दद्दा साँझ खानि के पूरे अध्धा। क...
का जमाना आ गयो भाया, साँच के साँच कहे भा माने में नटई से ना त बोलS फूटता, आ ना त बुद्धिये संग-साथ देत देखात बा। ऐरा-गैरा,नथ्थू-खैरा सभे गिया...
जब हम लइकई मे चउथी-पाँचवी मे पढ़त रहनी, ओह घरी रेडियो पर संझा के बेरा खेती-किसानी पर एगो प्रोग्राम आवत रहे, जवना के शुरू होते ई सुने के मिले ...
मन के सुघरई जब कविता, गीत, गजल का रूप में सोझा आवेले त ओकर सुघरई बखान का बहरे होला। अगर ओहमें देश प्रेम के छउंक लागल होखे त उ सुतलो मनई के च...
मरकिनौना कोरोना इहवाँ होरिया के रंग देखइबै हो मरकिनौना कोरोना भगइबै हो। कहवाँ डरबै रंग-अबीरवा अरे कहवाँ कुरता फरवइबै हो मरकिनौना कोरोना भगइब...
लउवा लाठी, चन्नन काठी चाट पोंछ के चिक्कन कइला कुल्हि पर बस लूट मचवलें चुरुवा भर पानी मे मरि जा॥ दिन मे करत छिनैती फिरलें ...
मिलजुल सबही के ज़ेबा टटोले के हर बेमारी मे, काम सरकारी मे देहरी मे घुसि के, जबरी बोले के बिलात विकेट से बिखरल पारी मे सुने जे ना केहु...
घरे - दुआरे सगरों शोर बनवा नाहीं नाचल मोर कइसे काम चलइहें मालिक॥ कइसे -----॥ हेरत हेरत हारल आँख केकर कहवाँ टूटल पांख सात ...
अन्हिया मे उड़ल छन्हियाँ, बनल कहानियाँ कि बबुआ के जनम भइलें हो॥ अरे हो घरे आइल आपन निसनिया कि चनवा उतरि अइलें हो॥ काटे धउरे चाँ...
पह फटते किरीनिया दुलराइल गुजरिया लजा गइलीं हों॥ छूटि गइलें घरवा छुटल नइहरवा हो। सइयाँ पर अपने मोहा गइलीं रस बरिसा गइलीं हो॥ ...
मरिचाई लागेले छुवला पर कबों-कबों बेछुवलो लागि जाले बेछुवल लागल मरिचाई ढेर दिन ले छछराले का जानि काहें ई लगियो जाले कु...
देई-देई बोलावा दुअरे बजना बजवावा अँगने कोइली अस कुंहुकी दुलारी धिया हो। सासु गोतिन के जगवा मिलजुल सोहर उठावा ननदो तोहरे अस च...
बूढ़वन के सुखले दियाता कहवाँ बा उजियार फलाने। रोवें पुक्का फार फलाने॥ कबों उनुका रहे फ़फाइल सीमा लाँघते उड़स आइल सोचीं सै सै...
ढहत-ढिमिलात, कंहरत-कूंखत बसंत आ रहल बा, अइसन कतों-कतों सुनातों बा। सुनला पर नीमनों लागत बा आ मनो खुस होता। होरी क दिन नगिचा आ रहल बा, मने ...
पोसलें अब कुछो पोसाता बूढ़वन के सुखले दियाता कहवाँ बा उजियार फलाने। रोवें पुक्का फार फलाने॥ कबों उनुका रहे फ़फाइल सीमा लाँघ...