
सिपाही सिंह 'श्रीमंत' के तीन गो कविता
बनल रहे बिसवास बनल रहे बिसवास बटोही, धीमा पड़े न चाल मंजिल दूर, थथम के बइठल, भाई रे, बा काल खाली सपना काम ना आई मन मोदक से भूख ना जाई ...
बनल रहे बिसवास बनल रहे बिसवास बटोही, धीमा पड़े न चाल मंजिल दूर, थथम के बइठल, भाई रे, बा काल खाली सपना काम ना आई मन मोदक से भूख ना जाई ...
प्रकाश चाही? प्रकाश बा कहाँ? दीया लेसे के होखे त विरहानल से लेस लऽ बुताइल दीया राख के का होई? इहे लिखल रलऽ भाग में? एह से त मरन अच...
सीखऽ भाई जिनगी में हँसे-मुसुकाए के।। इचिको ना करऽ पीर-तीर के खिअलवा, सिहरऽ ना सनमुख देख मुसकिलवा। नदी-नाला-परबत फाने के हियाव राख, मुँहवा ...
गूमसूम-गूमसूम तनिको ना भावे हमें आँधी हईं आँधी, अंधाधुंध हम मचाइले नास लेके आइले, कि नया निरमान होखो नया भीत उठेला, पुरान भीत ढाहिले। ढाहि...
बनल रहे बिसवास बटोही, धीमा पड़े न चाल मंजिल दूर, थथम के बइठल, भाई रे, बा काल खाली सपना काम ना आई मन मोदक से भूख ना जाई बुनी पकड़ के चढ़...
विपदा से हमरा के विपदा से हमरा के हरदम बचाव ऽ हरि ई ना बाटे मिनती हमार जब जहाँ विपदा से सामना जे होखे प्रभु हम नाही होईं भयभीत निड...