कहऽ, कइसे के खुसिया मनाईं मितवा।
कइसे खुसिया मनाईं
मन के का हो समुझाईं
घर में बाटे नाहीं दाना
नाहीं मिले के ठेकाना
का हो बेकतिन के अपना खियाई मितवा।
कबो परेला सुखार
कबो आवेला दहार
चुए ऊपर से पलानी
भितरा घुसि जाला पानी
कहुँवा लङ्कन के अपना सुताईं मितवा।
होखे अनजा ना भाई
रोज बढ़े महँगाई
एको पइसा ना पास
नाहीं करजे के आस
कइसे खेत के लगान हम चुकाईं मितवा।
रोवे बबुआ के माईं
कइसे तोह के बताईं
तनवा सभके उघार
केहू देला ना उधार
पहिरीं कपड़ा कि छुधवा बुताईं मितवा।
लइका रोवे छ-छ पाती
सुनके फाटे मोरी छाती
माँगे, "लोती दे ले माईं
अब ना भुखिया छहाई"
मन करे इहे फाँसी मह्म लगाईं मितवा।
कहाँ बाड़े भगवान
का ऊ भइले सयतान
जे गरीबो के सतावे
तनिको दया नाहीं आवे
मिलिते, कहितीं - तू हऽ हरजाई मितवा।
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अनिल ओझा 'नीरद'
रुद्रपुर बलिया
उत्तर प्रदेश
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