
अइली भदउवा के राति - दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह 'नाथ'
अइली भदउवा के राति, सघन घन घेरि रहे। बाबू चढ़लीं रैनि अधिराति, फिरंगी दल काँपि रहे॥ नभवा से गिरे झरि-झरि धार, तुपक रन गोली झरे। बाबू...
अइली भदउवा के राति, सघन घन घेरि रहे। बाबू चढ़लीं रैनि अधिराति, फिरंगी दल काँपि रहे॥ नभवा से गिरे झरि-झरि धार, तुपक रन गोली झरे। बाबू...
लउकता पहाड़ जइसे सूतल हो इअदिया। आन्हर अजगर अस दिसो गुमसम बिआ॥ धुँआ में सनाइल आदित थोरिके ऊपरवाँ। छीजत आवे नीचे जइसे मन के सपनवाँ...