तू दुर्गा बनिके अईलू तोहरे बल वीर चलावत भाला।
माई सरस्वती तू बनलू तोहरी किरिपा कविता बनि जाला।
आठ भुजा नभचुम्बी धुजा नही मैहर मे सीढियाँ चढ़ी जाला।
राउर ऊची अदालत बा बदरा जह से रचिके रही जला।। १ ॥
नही ढोवात अन्हार क भार बा, ताकत बाटे ढोवाई न देते।
झंखत बाटी अजोर बदे दीयरी ढिबरी से छुवाई न देते।
भोर समै पछ्तईबे अकेलई राह अन्हारे देखाई न देते।
बाती अकेली कहाँ ले जरई तनिका भर नेह चुवाई न देते॥ २॥
देखले कबौ न बाटी पढ़ले जरूर बाटी सुनीले कि ऋषि मुनि झूठ नाही बोलेले।
ब्रम्हा बिसुन औ महेश तीनिउ मोहि गईले माई तोर बीन कौन कौन सुर खोलेले।
द्रौपदी बेचारी बाटे खाली एक साड़ी बाटे उहो न बचत बाटे बैरी मिली छोरले।
अस गाढ़ समय मे देखब तोहार हंस हाली-हाली उड़ले कि धीरे-धीरे डोललें॥ ३॥
ना लूटिहई द्रौपदी कतहू मतवा भेजबू जौउ धोती एहां से।
रोज तू सुरुज बोवलू खेत मे रोजई भेजलू जोती एहीं से।
माई रे तोरे असिसन के बल पाउब छंद के मोती एहीं से।
बाटई हमे बिस्वास बड़ा निह्चाई निकले रस सोती एहीं से ॥ ४ ॥
ढोग कविताई क रचाई गैल बाटै तब छोड़ी के दूआरी तोर बोल कहाँ जाई रे।
भाव नाही भाषा नाही छंद रस बोध नाही कलम न बाटै नाही बाटै रोसनाई रे।
कौरव सभा मे आज द्रौपदी क लाज बाटै गाढे में परली बाटै मोर कविताई रे।
हियरा लगाई तनी अचंरा ओढाई लेते लडिका रोवत बा उठाई लेते माई रे ॥ ५ ॥
ओहि दिन पुरहर राष्ट्र धृतराष्ट भैल भागि मे बिधाता जाने काउ रचि गईलें।
नाऊ त धरमराज नाहि बा सरम लाज हाइ राम लाज क जहाज पचि गईलें।
ठाट बाट हारि गईलें राजपाट हारि गईलें आगे अब काउ हारे काउ बची गईलें।
अंत जब द्रौपदी के दाँउ पर धई देले अनरथ देखि हहकार मची गईलें॥ ६ ॥
नाहि ढेर बड़ि बाटै नही ढेर छोटी बाटै नाहि ढेर मोटि बाटै नाहि ढेर पतरी।
छोट छोट दांत बाटै मोती जोति माथ बाटै तनी मनि गोरी बाटै ढेर ढेर सवंरी।
बड़ बड़ बाल बाटै गोल गोल गाल बाटै गोड लाल लाल बाटै लाल लाल अगुँरी।
बड़े बड़े नैन वाली मीठे मीठे बैन वाली द्रौपदी जुआरिन के दाँउ पर बा धरी॥ ७ ॥
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माई सरस्वती तू बनलू तोहरी किरिपा कविता बनि जाला।
आठ भुजा नभचुम्बी धुजा नही मैहर मे सीढियाँ चढ़ी जाला।
राउर ऊची अदालत बा बदरा जह से रचिके रही जला।। १ ॥
नही ढोवात अन्हार क भार बा, ताकत बाटे ढोवाई न देते।
झंखत बाटी अजोर बदे दीयरी ढिबरी से छुवाई न देते।
भोर समै पछ्तईबे अकेलई राह अन्हारे देखाई न देते।
बाती अकेली कहाँ ले जरई तनिका भर नेह चुवाई न देते॥ २॥
देखले कबौ न बाटी पढ़ले जरूर बाटी सुनीले कि ऋषि मुनि झूठ नाही बोलेले।
ब्रम्हा बिसुन औ महेश तीनिउ मोहि गईले माई तोर बीन कौन कौन सुर खोलेले।
द्रौपदी बेचारी बाटे खाली एक साड़ी बाटे उहो न बचत बाटे बैरी मिली छोरले।
अस गाढ़ समय मे देखब तोहार हंस हाली-हाली उड़ले कि धीरे-धीरे डोललें॥ ३॥
ना लूटिहई द्रौपदी कतहू मतवा भेजबू जौउ धोती एहां से।
रोज तू सुरुज बोवलू खेत मे रोजई भेजलू जोती एहीं से।
माई रे तोरे असिसन के बल पाउब छंद के मोती एहीं से।
बाटई हमे बिस्वास बड़ा निह्चाई निकले रस सोती एहीं से ॥ ४ ॥
ढोग कविताई क रचाई गैल बाटै तब छोड़ी के दूआरी तोर बोल कहाँ जाई रे।
भाव नाही भाषा नाही छंद रस बोध नाही कलम न बाटै नाही बाटै रोसनाई रे।
कौरव सभा मे आज द्रौपदी क लाज बाटै गाढे में परली बाटै मोर कविताई रे।
हियरा लगाई तनी अचंरा ओढाई लेते लडिका रोवत बा उठाई लेते माई रे ॥ ५ ॥
ओहि दिन पुरहर राष्ट्र धृतराष्ट भैल भागि मे बिधाता जाने काउ रचि गईलें।
नाऊ त धरमराज नाहि बा सरम लाज हाइ राम लाज क जहाज पचि गईलें।
ठाट बाट हारि गईलें राजपाट हारि गईलें आगे अब काउ हारे काउ बची गईलें।
अंत जब द्रौपदी के दाँउ पर धई देले अनरथ देखि हहकार मची गईलें॥ ६ ॥
नाहि ढेर बड़ि बाटै नही ढेर छोटी बाटै नाहि ढेर मोटि बाटै नाहि ढेर पतरी।
छोट छोट दांत बाटै मोती जोति माथ बाटै तनी मनि गोरी बाटै ढेर ढेर सवंरी।
बड़ बड़ बाल बाटै गोल गोल गाल बाटै गोड लाल लाल बाटै लाल लाल अगुँरी।
बड़े बड़े नैन वाली मीठे मीठे बैन वाली द्रौपदी जुआरिन के दाँउ पर बा धरी॥ ७ ॥
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Anil Mishra
जवाब देंहटाएंमाननीय मुझे एवं प्रकाशक श्री चंद्रशेखर मिश्र द्वारा रचित द्रौपदी खंडकाव्य की पुस्तक उपलब्ध कराने में कृपा करें धन्यवाद
जवाब देंहटाएंपुस्तक हेतु सम्पर्क सूत्र-
हटाएं9935819408
9198797938
हटाएंपंडित चंद्रशेखर मिश्र द्वारा रचित द्रोपति काव्य खंड की पुस्तक ऑनलाइन उपलब्ध कराने की कृपा करें
हटाएंParshant (pdf) hame bhi share kare.
हटाएंहमे पीड़ा चाहिए 9621086961
हटाएंपंडित चंद्रशेखर मिश्र द्वारा रचित द्रोपति काव्य खंड की पुस्तक पीडीएफ में भेज दीजिये plz 9696560043
हटाएंKaran verma ka rulnabar
हटाएंHame pdf me chahiye
हटाएंमहोदय मुझे चंद्रशेखर मिश्रा द्वारा रचित द्रुपदी किताब खरीदनी है। कैसे मिलेगी?
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंPdf bhee agar kitaab mil jaay to bahut kripa hogee
हटाएंप्रशांत जी अभी आपने चन्द्रशेखर मिश्र रचित द्रौपदी खण्ड काव्य का ऑनलाइन पीडीएफ बिक्री (pdf me chahiye to hame batsye) ब्लॉग बन्द नहीं किया। यह आपका अधिकार नहीं किया है। उम्मीद है आप सहयोग करेंगे।
हटाएंधन्यवाद सहित
डॉ धर्मप्रकाश मिश्र
S/O पं चन्द्रशेखर मिश्र
पं चन्द्रशेखर मिश्र शोध संस्थान,वाराणासी
हमे pdf मे चाहिए द्रौपदी महाकाव्य
हटाएंकृपया द्रौपदी खंड काव्य का pdf प्रदान करे
हटाएंHame pdf me hi chahiye jisake paas ho sare kare
हटाएंमाननीय मुझे चन्द्रशेखर मिश्रा जी द्रौपदी खंडकाव्य मुहैय्या करायें। मैने हर जगह ढूँढा पर मिल नहीं रही
जवाब देंहटाएंAp isse varansi ke gitapress par mil skta hai
हटाएंMujhe bhi chahiye
जवाब देंहटाएंमुझे द्रोपदी चीर हरण की काव्य चाहिए चंद्रशेखर मिश्रा जी का
जवाब देंहटाएंहमें द्रोपदी चीर हरण की काव्य चाहिए चंद्रशेखर मिश्र जी का
हटाएंआदरणीय चन्द्रशेखर मिश्र जी की सभी कृतियां चाहिये थीं। कृपया यथोचित सुझाव दें।
जवाब देंहटाएंDropdi book Chahiye
जवाब देंहटाएंHamen PDF file bhejen whatsaap 7754097911
जवाब देंहटाएंMujhe mishra ji dwra rachit sita and lav kush khand kavy chahiye.
जवाब देंहटाएंमाननीय मुझे चन्द्रशेखर मिश्रा जी द्रौपदी खंडकाव्य मुहैय्या करायें। मैने हर जगह ढूँढा पर मिल नहीं रही
जवाब देंहटाएंPlz send me pdf
जवाब देंहटाएंश्रीमान द्रौपदी चिरहरण काव्य का हिन्दी संस्करण चाहिये कहा मिलेगा
जवाब देंहटाएंश्रीमान द्रौपदी चिरहरण काव्य का हिन्दी संस्करण चाहिये कहा मिलेगा
जवाब देंहटाएंपुस्तक कहां मिल सकता है ।कृपया बताने की कृपा करें ।🙏
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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जवाब देंहटाएंBheeshm, aur draupadi, Chandrasekhar Mishra ji ki book kahan milegi Lucknow me
जवाब देंहटाएंहमे पीडीएफ चाहिए
जवाब देंहटाएंखींच दुःशासन जोर लगाइके
जवाब देंहटाएंद्रोपदी खंडकाव्य का पीडीएफ चाहिए
जवाब देंहटाएंद्रौपदी खंड काव्य मुझे भी चहिए 9621537569 कैसे प्राप्त होगा
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंDropadi khandkaby chahiye hame
जवाब देंहटाएंहमे pdf में चाहिए
जवाब देंहटाएंतीन विमान उड़े नमः में छंद चाहिए
जवाब देंहटाएं