डरे से बानी हम - राजीव उपाध्याय

सबेरे-सबेरे
निकलेनी जब काम पऽ अपना
तऽ साँझी के खाना के
मेयन बता के जानी
कि वादा रहेला
लवटि के आइब साँझी खा जरूर।

जब दिन में आवेला फोन कई बेर
झुझुआ जानी जब हम
तऽ बिहसि रिगावेली
हँसेली खुब
कि ठीक बा सभ।

रोज साँझी खा
लेनी हाल-चाल उनकर
तऽ खिसिया कहियो डपटस
‘बुझ तानी!
बाप हवीं तोहार हम।‘

का करीं?
डरे से बानी हम!
बा भरल सगरे काज हमार।
अँगुरियो टोवत रहेनी
बगली से
निकाल-निकाल के हम।
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लेखक परिचय:-
नाम: राजीव उपाध्याय
पता: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश
लेखन: साहित्य (कविता व कहानी) एवं अर्थशास्त्र
संपर्कसूत्र: rajeevupadhyay@live.in
दूरभाष संख्या: 9650214326
ब्लाग: http://www.rajeevupadhyay.in/
फेसबुक: https://www.facebook.com/rajeevpens


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