
बीत गइल मधुमास सुहावन - गणेश दत्त ‘किरण’
बीत गइल मधुमास सुहावन, साँस-साँस में बिथा समाइल; अब बतलाव अइल हा तू, केकर माँग सँवारे हो? कतना फागुन गइल, सूल से भरल बदरिया लहराइल ...
बीत गइल मधुमास सुहावन, साँस-साँस में बिथा समाइल; अब बतलाव अइल हा तू, केकर माँग सँवारे हो? कतना फागुन गइल, सूल से भरल बदरिया लहराइल ...
भोरे भोरे सूरज आके जब मुस्काये लागल, धीरे-धीरे हमरा मन के कमल फुलाए लागल। कतना दिन पर उनुका के भर नजर निहारत बानी, का जाने काहे ...