
बैद्यनाथ पाण्डेय ‘कोमल’ के दू गो कविता
रतिया चुपके दूर छितिज से डुघुरल आइल रे रतिया। रुखवन के पतइन में विहगन के अँखिया निदिआइल; दिनवाँ के मनमोहक सुषमा अब झट से मुरझाइल, ...
रतिया चुपके दूर छितिज से डुघुरल आइल रे रतिया। रुखवन के पतइन में विहगन के अँखिया निदिआइल; दिनवाँ के मनमोहक सुषमा अब झट से मुरझाइल, ...
चुपके दूर छितिज से डुघुरल आइल रे रतिया। रुखवन के पतइन में विहगन के अँखिया निदिआइल; दिनवाँ के मनमोहक सुषमा अब झट से मुरझाइल, करिया ओढ...
दीन मजदूरवन के काई बरनन करीं कुछुओ बा कहलो ना जात। जेकरा जिनिगिया में सुखवा सपन भइले दुखवा के बडुए जमात। रतिया बीतल सूते, रतिया रहत जा...
नभ के तलइया में पूरबी कगरिया पर खिलले कमल एक लाल। धरती के मंगिया में सेनुरा चमकि उठल फूलवा पतइयन के बगिया लहसि उठल घसिया के फुनुगी पर ...