भोजपुरी साहित्य के इतिहास लगभग एक हजार साल से अधिका पुरान बा। एह काल अवधि में भोजपुरी साहित्य एगो लमहर जतरा तय कइले बिया। कविता से शुरू भइल ई जतरा आज लगभग हर विधा में आपन पहुँच बना ले ले बा। बाकिर साहित्य सरजना के हिसाब से सभसे अधिका काम कविता विधा में भइल बा। चौरंगीनाथ अउरी सरहपा (श्री अर्जुन तिवारी के हिसाब से) से चलि के गोरखनाथ आ कबीर से होत ई जतरा आज के नवकी धार ले चहुँपल बे। एह जतरा में लगभग सगरी भारतीय अउरी अनेकन विदेशी (हाइकू) छंदन में भोजपुरी के रचना रचाइल बा। कविता के पक्ष में झुकल ई पाला बहुत स्वाभाविक बा। लोकसाहित्य के जनम के आधार लोकगीत बा अउरी लोकमन में काव्य अउरी छन्द के प्रति स्वभाविक आकर्षण होला। ई बात खाली भोजपुरी ना बलुक दुनिया के सगरी लोकसाहित्य खाति साँच बा।
भोजपुरी में जइसे काव्य के विकास भइल बा ओही तरे लेख, कहानी, नाटक, एकांकी अउरी व्यंग्यो पऽ खुब काम भइल बा। बाकिर काव्य के तुलना के ई काम बहुत कम बा। एह रचनाक्रम में ना खाली रचनन में विविधता आइल बा बलुक अपना समय के माँग के हिसाब से रचनन के विषयवस्तुओ बदलल बा। भोजपुरी के एह गतिशील जतरा के ले के थोड़ा बहुत अध्ययन अउरी विवेचना जरूर भइल बा बाकिर एकर तुलनात्मक अउरी व्यापक अध्ययन बहुत जरूरी बा जेवन बहुत कम भइल बा।
ओह समय में जब समाज के सगरी संदर्श अउरी संदर्भ बदलत होखे; जब भूमंडलीकरण, पूँजीवाद अउरी आधुनिकता के नाँव पर शहरीकरण के प्रवृत्ति ना खाली सामाजिक परिवर्तन कऽ रहल होखे बलुक सगरी स्थापित मूल्यन के चुनउती देत नया मूल्यन के स्थापना कर रहल होखे; परम्परा के सगरी खूँटा उखारि के नया खूँटा गाड़त होखे; जब वादन के विवाद समाज में स्पष्टता के बदले सत्य के झाँपी में तोपि के धुँध बढ़ावत होखे तब अइसन समय में ई जरूरी हो जाला कि भोजपुरी खुद ई लगातार पूछत रहे कि का भोजपुरी साहित्य अपना समय के हिसाब से अपना के ढाल रहल बा कि ना अउरी जदि ढ़ाल रहल बा तऽ का ओकर दिशा सही बा?
ई सवाल लगातार कइल जरूरी बा काँहे कि केवनो समाज बहरि चाहें केतनो स्थिर लउकत होखे बाकिर भीतर से ऊ कबो ठहरल ना होला बलुक ओकरा भीतर संक्रमण अउरी परिवर्तन के चक्र चलत रहेला। अउरी जरूरी नइखे कि सही दिशा में होखे। आज भोजपुरिय समाज ना खाली संक्रमण काल से हो के गुजरता बलुक बहुत तेज गति से बदल रहल बा। एह समय बिन्दु पऽ खड़ा होके बार-बार सवाल कइल आवश्यक बा।
भोजपुरी में जइसे काव्य के विकास भइल बा ओही तरे लेख, कहानी, नाटक, एकांकी अउरी व्यंग्यो पऽ खुब काम भइल बा। बाकिर काव्य के तुलना के ई काम बहुत कम बा। एह रचनाक्रम में ना खाली रचनन में विविधता आइल बा बलुक अपना समय के माँग के हिसाब से रचनन के विषयवस्तुओ बदलल बा। भोजपुरी के एह गतिशील जतरा के ले के थोड़ा बहुत अध्ययन अउरी विवेचना जरूर भइल बा बाकिर एकर तुलनात्मक अउरी व्यापक अध्ययन बहुत जरूरी बा जेवन बहुत कम भइल बा।
ओह समय में जब समाज के सगरी संदर्श अउरी संदर्भ बदलत होखे; जब भूमंडलीकरण, पूँजीवाद अउरी आधुनिकता के नाँव पर शहरीकरण के प्रवृत्ति ना खाली सामाजिक परिवर्तन कऽ रहल होखे बलुक सगरी स्थापित मूल्यन के चुनउती देत नया मूल्यन के स्थापना कर रहल होखे; परम्परा के सगरी खूँटा उखारि के नया खूँटा गाड़त होखे; जब वादन के विवाद समाज में स्पष्टता के बदले सत्य के झाँपी में तोपि के धुँध बढ़ावत होखे तब अइसन समय में ई जरूरी हो जाला कि भोजपुरी खुद ई लगातार पूछत रहे कि का भोजपुरी साहित्य अपना समय के हिसाब से अपना के ढाल रहल बा कि ना अउरी जदि ढ़ाल रहल बा तऽ का ओकर दिशा सही बा?
ई सवाल लगातार कइल जरूरी बा काँहे कि केवनो समाज बहरि चाहें केतनो स्थिर लउकत होखे बाकिर भीतर से ऊ कबो ठहरल ना होला बलुक ओकरा भीतर संक्रमण अउरी परिवर्तन के चक्र चलत रहेला। अउरी जरूरी नइखे कि सही दिशा में होखे। आज भोजपुरिय समाज ना खाली संक्रमण काल से हो के गुजरता बलुक बहुत तेज गति से बदल रहल बा। एह समय बिन्दु पऽ खड़ा होके बार-बार सवाल कइल आवश्यक बा।
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