
डॉ प्रमोद कुमार पुरी के पाँच गो कविता
तेज दिहलु माई तू हमके तेज दिहलु काहे कि हम एगो लईकी हई माई..... कोख में आवते ही घर भर संग मिली गर्भ में मुआवे खाति तुहूँ तयार हो गईलू ....
तेज दिहलु माई तू हमके तेज दिहलु काहे कि हम एगो लईकी हई माई..... कोख में आवते ही घर भर संग मिली गर्भ में मुआवे खाति तुहूँ तयार हो गईलू ....
अपने हाथ से खोनत देखीं आपन उ त क़बर बा, देह से बा बड़ियार बाकिर दिल से उ त अबर बा। खाली हाथ उ आइल रहे, खाली हाथ ही जाइ, पाई -पाई जोड़े फिर भी...
जिनगी के सुरुज, जाने कब ढल जाई! आदमी के का भरोसा, कब बदल जाई!! बड़ भाग्य से इहा, मिलल मनुज तन, माया लोभ में लिपटल, रहे अबूझ मन, सुख –दुःख म...
धर्म-आडम्बर के चादर ओढ़ी देश बनवले आन्हर-कोढ़ी! बखत पर नून रोटी ना जुरत बा, केहू घीव ढार-ढार पिअत बा! घर के भीतरी आग लागल बा, देख पड़ोसी भाग ...
जात-पात के जहर, मन में बो रहल बा आदमी! आपस के प्यार सब, अब खो रहल बा आदमी! जात-पात के जहर ..... का होला मेल मिलाप, हँसी ठिठोली टोनहा ...
माई तू हमके तेज दिहलु काहे कि हम एगो लईकी हई माई..... कोख में आवते ही घर भर संग मिली गर्भ में मुआवे खाति तुहूँ तयार हो गईलू ... माई..... ए...
जवन बीत गइल जिनगी में कहाँ केहू से भला लवटावल गइल बा! खुदही के खुद से एह जग में कहाँ केहू से दियना देखावल गइल बा! जरत झोपड़ी के खोरेला सभे...
खुश ना रहे बाल बच्चा तहार लाख कमाई ... --------------- हँसत रहे परिवार हमार बिना मिठाई ... --------------- जरेले काह...