
कँवल से भँवरा विछुड़ल हो - कबीरदास
कँवल से भँवरा विछुड़ल हो, जहँ कोइ न हमार ।।1।। भौंजल नदिया भयावन हो, बिन जल कै धार ।।2।। ना देखूँ नाव ना बेड़ा हो, कैसे उतरब पार ...
कँवल से भँवरा विछुड़ल हो, जहँ कोइ न हमार ।।1।। भौंजल नदिया भयावन हो, बिन जल कै धार ।।2।। ना देखूँ नाव ना बेड़ा हो, कैसे उतरब पार ...
मन न रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा।। टेक।। आसन मारि मंदिर में बैठे, नाम छाड़ि पूजन लागे पथरा।। 1।। कनवां फड़ाय जोगी जटवा बढ़ौले, दाढ़ी बढ़ाय ज...
का ले जैबो, ससुर घर ऐबो।। टेक।। गाँव के लोग जब पूछन लगिहैं, तब तुम का रे बतैबो ।। 1।। खोल घुंघट जब देखन लगिहैं, तब बहुतै सरमैबो ।...
तोर हीरा हिराइल बा किंचड़े में।। टेक।। कोई ढूँढे पूरब कोई पच्छिम, कोई ढूँढ़े पानी पथरे में।। 1।। सुर नर अरु पीर औलिया, सब भूलल बा...
कौ ठगवा नगरिया लूटल हो।। टेक।। चंदन काठ कै वनल खटोलना, तापर दुलहिन सूतल हो।। 1।। उठो री सखी मोरी माँग सँवारो, दुलहा मोसे रूसल हो।। 2।। आय...