
लइका बूढ़ के झगरा - गुलाबचंद सिंह ‘आभास’
बम्बे-मेल, देहरादून, हमहूँ तूफान रहीं। ए बाबू! सुन ऽ हो हमहूँ जवान रहीं॥ फुटुर फुटुर कबे ले, हाँकत तू का बाड़ ही ही ही ही कबे ले, झाँकत...
बम्बे-मेल, देहरादून, हमहूँ तूफान रहीं। ए बाबू! सुन ऽ हो हमहूँ जवान रहीं॥ फुटुर फुटुर कबे ले, हाँकत तू का बाड़ ही ही ही ही कबे ले, झाँकत...
1 सजनि कहेले पिया भारी उत्पाती हऊ थामऽ तू बनूक, ना उठऽ, मोरा खाटी से ससुई कहेले “बहु” हमके देखादऽ ना मुहवाँ झोकार देब, बरते लुकाठी स...