
दिन बहुराइल बा - सौरभ पाण्डेय
दिन बहुराइल बा अब जाके सदियन के ऊँघी टूटल बा चमक उठल बा मन मरुआइल मनसायन जे घड़ी बनल बा । सूरुज के ना आवल लउके बेरा डूबल कहाँ बुझाओ आन्ही-पान...
दिन बहुराइल बा अब जाके सदियन के ऊँघी टूटल बा चमक उठल बा मन मरुआइल मनसायन जे घड़ी बनल बा । सूरुज के ना आवल लउके बेरा डूबल कहाँ बुझाओ आन्ही-पान...
देस आ दासा मन चिहुँकेला, सोचे बेबाती जे लोग राग कइसे लगइहें.. मन खउँझेला अन्हरे-पराती जे जोग भाग कइसे जगइहें.. देस के आने प...
मन चिहुँकेला, सोचे बेबाती जे लोग राग कइसे लगइहें.. मन खउँझेला अन्हरे-पराती जे जोग भाग कइसे जगइहें.. देस के आने प जिनगी चलौनीं ...
गइल भँइसिया पानी में, अब कइल-धइल सब बंटाधार! बान्हबि पगहा, रउए ढूँसी सुखहा मोन्हे मूड़ी ठूँसी फेर घींच ले आईं, बान्हीं, करीं...