
बाकिर कइल बहुत जरूरी - राजीव उपाध्याय
बहुत काम बा अइसन जेवन लागे ना जरूरी देखला पऽ दूर से कब्बो बाकिर कइल बहुत जरूरी; जइसे झारलऽ पुरान कपड़ा जाड़ा में भा पपनी पर चढ़ल धूर! जेवन च...
बहुत काम बा अइसन जेवन लागे ना जरूरी देखला पऽ दूर से कब्बो बाकिर कइल बहुत जरूरी; जइसे झारलऽ पुरान कपड़ा जाड़ा में भा पपनी पर चढ़ल धूर! जेवन च...
मैना के दस बरिस ई बात 2013 के हऽ। ओह समय इन्टरनेट भोजपुरी भोजपुरी साहित्य कम उपलब्ध रहल। बेवसाइट के रुप में डॉ ओमप्रकाश जी शुरू कइल भोजपुरि...
सिय राम मय सब जानी सगरी जग अउरी हर बेकति में प्रभु श्रीराम के वास बा। एह जग में केवनो अइसन जगह भा बेकति नइखे जेकरा में प्रभु श्रीराम के वास ...
बहुत काम बा अइसन जेवर लागे ना जरूरी देखला पऽ दूर से कब्बो बाकिर कइल बहुत जरूरी; जइसे झारलऽ पुरान कपड़ा जाड़ा में भा पपनी पर चढ़ल धूर! जेवर च...
आज अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हऽ। माने अबले के चलन के हिसाब से एगो इवेंट। सालगिरह टाइप के! जदि एकरा के इवेंट के हिसाब से देखल जाओ तऽ बधाई ...
चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह 'आरोही' केवनो भाखा के साहित्य के विकास के प्रक्रिया में जरूरी बा कि लोग हर रचनाकार के रचनन के बिना पूर्वा...
सोशल मीडिया के दौर में भोजपुरी आठवीं सदी में नाथ संप्रदाय के संत चौरंगीनाथ से ले के आज इक्कीसवीं सदी ले भोजपुरी एगो भाखा के रुप में एक हजार...
कोरोना वायरस, मानवता अउरी शक्ति के लोभ कहावत बा कि जब आदिमी दोसरा खाती गड़हा खोनेला तऽ ओह गड़हा में ओकरो गिरे के संभावना लगातार बनल रहे...
भोजपुरी साहित्य के इतिहास लगभग एक हजार साल से अधिका पुरान बा। एह काल अवधि में भोजपुरी साहित्य एगो लमहर जतरा तय कइले बिया। कविता से शुरू ...
फेर काँहे सुनेनी हम तोहार बतिया उठि सूती पूछे मन, एगो हमसे बतिया काहे खाती दिन बावे, काँहे खाती रतिया॥ रोज भिंसहरे काँहे, किरिन सूरुजव...
सबेरे-सबेरे निकलेनी जब काम पऽ अपना तऽ साँझी के खाना के मेयन बता के जानी कि वादा रहेला लवटि के आइब साँझी खा जरूर। जब दिन में आवेला फोन कई ब...
कबो-कबो अइसन होला कि फंसरी में जीव परेला। रहिया ओढन बासन-डासन बाति सगरी हो जाला गुमानी जइसे सरसों के फूल पर लाही जाड़ा में गिरेला। तूरि के ...
मन-मन सोचि-सोची काँहे मुसका लऽ केहू ना केहू सूनले तऽ होई। बात जेवन तूँ कहब केहू से केहू ना केहू कहले तऽ होई॥ कुछू नाही बावे तोहसे इहा...
उठि सूती पूछे मन, एगो हमसे बतिया काहे खाती दिन बावे, काँहे खाती रतिया॥ रोज भिंसहरे काँहे, किरिन सूरुजवा अउरी अन्हियारा, काँहे रोजे-रोज...
रासता जे चलब केहू ना केहू भेंटाई जरूर अउरी भेंटाई जे तोहरा में घर बनाई जरूर। ऊ फूली फूलाई अघाई तब जाके कहियो मन के कहंतरी अदही फफनाई जरूर।...
बहुत शुबहा कइल बोलल बहुत उरेब सभ से कुछ सवाल पूछि ली अब मन! रूकि के अपना से कि काँहे छूटल जाता सभ लोग तोहरा से। एतना बोझा मत ढोव मन...
चान बदरी में काँहे लुकाइल कि चकती लगा के बउराइल। जे सूरूज नाही जागे भिंसहरे राति काँहे के बावे कोहनाइल। किरिन जे फूटी त ओरइबे करी कि संझवत...
कह! आखर केवन लिखीं कि बात तोहरा ले चहुँपे अउर अझुराइल गिरह सभ खुल जाओ कि हम मन के पाँख पसार आसमान अँजूरी में भर लीं। भरि लीं हम उहो कोना...
कहिया ले अइब तू संइया हमार मनवा ना लागे इहाँ डहके हजार। कहिया ले अइब तू संइया हमार॥ घर के चुहानी में केतना दिन काटीं आँगन रोवेला, तिकवे ला...
डुबि-डुबि मुए राम पूतना कान्हा मुआई गौतम कन्हाई सभ केहू करम गति पाई॥ नेम आचार धरम सभ पानी में गोताई देहिया के चूवल पानी बस...