
मासन में पूसे बदमास - आचार्य महेन्द्र शास्त्री
मूस बनवलस पापी पूस। पाईं कहाँ रजाई धूस॥ दुनियाँ भर से गरमी गइल। हाँथ-गोड़ सब सन्न भइल ॥ सूरज तक ले आज सेराइल। का होखो घा...
मूस बनवलस पापी पूस। पाईं कहाँ रजाई धूस॥ दुनियाँ भर से गरमी गइल। हाँथ-गोड़ सब सन्न भइल ॥ सूरज तक ले आज सेराइल। का होखो घा...
धन के महातम हमेसा से बहुत बरिआर रहल बा। अउरी हमेसा से समाज दूगो खाना में बंटाइल बा; बरिआर अउरी कमजोर। बरिआर हमेसा कमजोर के जोर से बरिआर भ...
आज आकाश में भी बथान भइल रे चान सूरज पर आपन मकान भइले रे। रोज विज्ञान के ज्ञान बढ़ते गइल, लोग ऊँचा-से-ऊँचा पर चढ़ते गइल आज सगरे आ सबकर उथा...
छोड़-छोड़ आसा अकेले नाव खोल रे। ऊ खूब नीमन गइला पर जननी लगेला सुहावन सुदूर वाला ढोल रे। अब-तक उनकर मुँह हम जोहनी निमने भइल कि खुल गइल...