विद्या शंकर विद्यार्थी के मुक्तक

(1)
जब प्रेम के इजहार चले लागल
तब नेह के सनसार चले लागल
आदत जरे ओला के ढह गइल
नदी में नाव के सवार चले लागल।
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(2)
एह बसंत के लेके चर्चा खूब बा
केहू के त रंग डाले के मंसूब बा
आईं हमनियो के गुलाल घसीं जा
बिहंसीं सं खुलके काहे ऊब बा।
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(3)
तोहरे किरिया ई पीर बढ़त बा
आंखी में नेह के नीर बढ़त बा
संजोग जुट कहिया सोचत बानीं
दूर रहे के ई तकदीर बढ़त बा।
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(4)
कुंभ नेहान में केतना लोग मर गइल
केहू के बसेरा भगदड़ में उजर गइल
पता बा नू कि भीड़ में सोच ना होला
एह हूह में सपना कुल्ही बिखर गइल।
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(5)
माई बाबू से बढ़के दूजा कुछ होला का
आ सेवा से बढ़के पूजा कुछ होला का
साच कहला पर जबून लागेला कुछ के
चार रोटी से बढ़के भूंजा कुछ होला का।
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लेखक परिचयः
C/o डॉ नंद किशोर तिवारी
निराला साहित्य मंदिर बिजली शहीद
सासाराम जिला रोहतास ( सासाराम )
बिहार - 221115
मो 0 न 0 7488674912

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