बदलल गँउआ अब ना भावे - दिलीप कुमार पाण्डेय

निर्जन बर-बथान अउर घोंठा,
ना त अखाड़ा ना लंगोटा।
ताकत बा ब्रह्म जी के ओटा,
कहाँ केहू तउला चढ़ावे?
बदलल गँउआ अब ना भावे॥

पांत के पत्तल मिले ना कतहुँ,
भाई भात निन्हें ना कतहुँ।
मिलजुल काम करे ना कोई,
सजत धजत सब समय गँवावे।
बदलल गँउआ अब ना भावे॥

फुहर गीत क नवही दिवाना,
मरद त मरद नाचे जनाना।
मस्ती जब पहुंचे चरम पर
मनबढूआ गोली बरसावे।
बदलल गँउआ अब ना भावे॥

उतरत कूदे नइकी कनिया,
चिन्हत ना तेजपात धनिया।
शासन दाब कुछहु ना माने,
बड़ छोट से जबान लड़ावे।
बदलल गँउआ अब ना भावे॥

दिन दिन मेल मिलाप बा घटत,
एके लाद में नइखे पटत।
अखज सधावे ला सभ व्याकुल,
केहू ना मन भेद मिटावे।
बदलल गँउआ अब ना भावे॥
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लेखक परिचय:-
बेवसाय: विज्ञान शिक्षक
पता: सैखोवाघाट, तिनसुकिया, असम
मूल निवासी -अगौथर, मढौडा ,सारण।
मो नं: 9707096238

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