
चलि मन हरि चटसाल पढ़ाऊँ - संत रैदास
चलि मन हरि चटसाल पढ़ाऊँ। गुरु की साटि ग्यांन का अखिर, बिसरै तौ सहज समाधि लगाऊँ। प्रेम की पाटी सुरति की लेखनी करिहूं, ररौ ममौ...
चलि मन हरि चटसाल पढ़ाऊँ। गुरु की साटि ग्यांन का अखिर, बिसरै तौ सहज समाधि लगाऊँ। प्रेम की पाटी सुरति की लेखनी करिहूं, ररौ ममौ...
नरहरि चंचल मति मोरी। कैसैं भगति करौ रांम तोरी।। तू कोहि देखै हूँ तोहि देखैं, प्रीती परस्पर होई। तू मोहि देखै हौं तोहि न देखौं,...
गाइ गाइ अब का कहि गाऊँ। गांवणहारा कौ निकटि बतांऊँ।। टेक।। जब लग है या तन की आसा, तब लग करै पुकारा। जब मन मिट्यौ आसा नहीं की, तब ...
अब मोरी बूड़ी रे भाई। ता थैं चढ़ी लोग बड़ाई।। टेक।। अति अहंकार ऊर मां, सत रज तामैं रह्यौ उरझाई। करम बलि बसि पर्यौ कछू न सूझै, स्...
अखि लखि लै नहीं का कहि पंडित, कोई न कहै समझाई। अबरन बरन रूप नहीं जाके, सु कहाँ ल्यौ लाइ समाई।। टेक।। चंद सूर नहीं राति दिवस नहीं, धरनि...
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी। जाकी अंग-अंग बास समानी॥ प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा॥ प्रभु जी तुम दीपक हम ...