सगुण के फेरा में निर्गुण ना भेंटाइल
ना रामजी मिलले,ना कृष्ण कन्हाई
फेरा कवनो चीज के ठीक ना ह ई सुनले रहीं बाकिर तोतवा दाल के फेर में जाल में आ हम नाम के फेरा में कारावास के फेर में पड़ गइनीं।नामो के फेर दू तरह के होला। एगो देहिया के नाम के फेर होला जेकरा खातिर धन, दौलत, जायदाद,सोहरत बटोरत चलेला मनई ई जानतो कि एह में कवनो टिकाऊ ना होखे आ एक जगह से दूसरा जगह जात देर ना लागे।अगर टिकियो गइल त अंत में छोड़ के जाए के परेला आ चउरासी के चक्कर अलगे। दूसरा नाम के फेर विदेह बने के फेरा होला। देहिया रहते देह से संबंध विच्छेद।विदेहे रहे के रहे त पैदा काहे के भइल आदमी? अइसन संशय देख के इयाद आवे एके सड़क दूई रहिया ए बालम कवन रहिया,हम जाईं ए बालम कवन रहिया।बालम के बतावहीं के रहित त अइसन दुविधा में डलतन काहे के। दुविधा में दूनों जाला भाई जी- ना मिले माया, ना मिलस राम। बाकिर लोक संत लोग रामे के चक्कर में रहे के सलाह देला। कहेला कि राम के चक्कर भव सागर पार लगा देला,राम से मिला देला, चउरासी के चक्कर छोड़ा देला।कहल गइल बा कि बड़ के बात आँखि मुंद के मान लेवे के चाहीं।हम असहूं ढेर दिमाग ना लगाईं। ना का लगाईं, दिमाग रहे तब त लगाईं। संत सरकार के बात मान के राम नाम के फेर में पड़ गइनीं। हम का जानत रहीं दादा नाम के चक्कर अइसन होला।सवालो अपना आप पर। हम के हईं ? उहो अपने से। जेह देह आ दुनिया में भुलाइल रहनी ओह पर सवाल खड़ा हो गइल सांच आ झूठ के? कबीर के आँखि देखे वाला फार्मूला फेल।अइसन अझुरहट कि कतनो सझुराईं अउरी उलझि जाय।दिन - रात बुझाय दिमाग के मही बन जाई।सुतलो पर चैन ना सपनवो में ओही में अझुरा जाई। बुझाइल एकरा से पीछा छोड़ावे के होई। बाकिर ट्रक प लिखलका अस ' लटकले त गेले बेटा ' बुझाय कि ' छोड़ले त गेले बेटा '।
नाम के चक्कर लागल कइसे एकरो कहानी बा। एकरो पीछे नामे बा। बाबू - माई के ना जाने का हमरा में दिखल कि नाम रख देलक गुणानंद।तनी सरेख भइनी तब जाके के ऊ लोग के लागल कि बबुआ बरहगुना ना निकलल, ई त बेगुना हो गइल।जब उहे लोग के अइसन लागल त अइसना में गाँव भर कहे कि ' गुणानंद बेगुना, भात खाय एक बरहगुना ' त केकर - केकर मुँह रोकतीं।तनी अउर सयान भइनीं त लागल कि जेकरा भीरी जे ना होला ऊ भगवान जी से मंदिर - मस्जिद - गिरजाघर - गुरूद्वारा में जाके माँगेला। हमहूं सब ओह ठेहा पर गुण खातिर माथ पटकनी जहवाँ भगवान निवास करत रहन। बाकिर कहीं प्रसाद मिलल त कहीं लंगर में भर बरहगुना भात। ना गुण भेंटाइल ना भगवान। लोग कहल भगवान के खुश करे खातिर कुछ विशेष परब - त्योहार करे के पड़ेला।छठ - एतवार - एकादशी का ना कइनीं बाकिर गुणानंद के ना गुण भेंटाइल ना राम - कृष्ण भेंटइलें।गुण - निर्गुण ना भेंटाइल।भेंटा गइली माई - बाबू के कृपा से सगुनी। सगुनी हमार मेहरारू के नाम ह। गुणानंद के गुण के खोज में बाहरी दउड़त देख एगो डोर से नाथे के उदेस से सगुनी से गंठबंधन करा देल गइल। रूप से आगर गुण के गागर सगुनी सांचो गुण से भरल रहे। बाकिर हम ओकरा से गुण ना सिखनी, ओकर रूप प लट्टू हो गइनीं। गुणानंद के दुनिया सगुनी के आंचर में सिमट के रह गइल। सगुनी गुणानंद के सब बाति बूझ के तुलसी बाबा जइसन हड़कवलस - दुतकरलस ना।गते एक दिन ले गइल साथे सत्संग में। दाढ़ी वाला बाबा के सत्संग चलत रहे।देह के मेंह में बन्हि चउरासी के चक्कर छोड़ावे के प्रसंग में संत महराज कहले कि -
गुणानंद बिनु नाम दान, देह के रही अभिमान
सगुनी जस पत्नी मिली,ना मिली गुण आ ज्ञान
राम शरण में सब मिली, राम के करऽ गुणगान
नाम दान ले बढ़ि चलऽ, रामजी रखिहें ध्यान।
हमरा कुछ - कुछ बुझाइल बाकिर ई ना बुझाइल कि संत महाराज हमार नमवाँ कइसे जान गइलन। केकरा से पूछीं ई बुझात ना रहे। सगुनी के कहनीं तू बताव एकर राज।ऊ त एकरे दाव खोजत रहे।कहलस हरि कृपा।हम ना बुझनी त फरिया के बतवलस। भगवान से कवनो बात नइखे छुपल। तोहार सब खेल देखिके के तोहरा प दया आ गइल। भगवान जी तोहरा के चाम सुख से हटा के नाम सुख से जोड़े खातिर संत दरबार में बुला लेले।हरि कृपा से गुरु भेंटालन। भगवान के भेजल गुरु संत महराज हवे।भगवाने जी नाम बतवले होइहें। एह चक्कर में जनि पड़ नाम तोहार कइसे भेंटाइल। धरम दास के भजन बाबू के गावत सुनले बानीं नू-
कहँवा से जिव आइल , कहँवा समाइल हो ।
कहँवा कइल मुकाम , कहाँ लपटाइल हो ॥
निरगुन से जिव आइल , सगुन समाइल हो ।
कायागढ कइल मुकाम , माया लपटाइल हो ॥
सगुनी कहलक माया में कबले लपटाइल रहब। सगुनी के प्रेम में कबले भुलाइल रहब। देह जाल ह जनि उझराईं। रैदास जी कहलका इयाद करीं -
जहँ जहँ आस धरत है यह मन,
तहँ तहँ कुछ ना पावै।
एह जग में कतहीं कुछ ना भेंटाई लाला। बिना हरि के जनले कुछ ना भेंटाई ई जान लऽ। रैदास के अनुभूति ह -
सब में हरि है हरि में सबहै, हरि अपनो जिन जाना
साखी नहीं और कोई दूसरा, जाननहार समाना।
समझावत सगुनी आगे बोलल हरि के भेजल गुरु शरण लीं आ नाम दान लिहीं जे चाहीं आपन कल्याण। सगुनी, संत आ सत्संग के चक्कर में गुणानंद नामधारी बन माला के चक्कर में पड़ गइलन। सगुनी के गुणानंद राम के हो गइलन।भात के भूख भागल, भाव के भूत धर लेलस।देह के भरम मिटल, विदेह के राहि ध लेलन गुणानंद।
राम के सनेह में सगुनी भुला गइल
नाम से जुड़ि गुणानंद हेरा गइल।
सगुनी सगुन उपासक रहे ई त जानत रहीं। संत आ सत्संग के चक्कर में हमरा के निर्गुण राह धरा गइल। बाबा लोगिन आ नाम दान के चक्कर में गुणानंद के अकील भुला गइल।अँखिया देखे कुछ, दिखाई पड़े सगरो राम।जहँ देखीं तहँ तूही तू। पहिले सगुनी लउकत रहे अब राम जी। गुरुजी के कबीर साहब के सुनावल ई भजनवा में मन भुलाइल रहत रहे, सगुनियो भुला गइल हमरा ओह भजन सुनके -
दुलहिनी गावहु मंगलचार,
हम घरि आये हो राजाराम भरतार।
तन रत करि मैं मन रत करिहूं पंच तत्व बराती।
रामदेव मोरै पाहुने आये, मैं जीवन मैं माती।।
सरीर सरोवर वेदी करिहूं, ब्रम्ह वेद उच्चार।
रामदेव संगि भांवरि लैहूं, धनि - धनि भाग हमार।।
सुर तेतीसूं कौतिग आये, मुनिवर सहस अठयासी।
कहै कबीर हम व्याहि चले हैं,पुरिष एक अविनाशी।।
सगुनी माथ पिटे कि ई कवन भंवर में पड़ी गइनी कि हमरे भतार राम के भतार बना लेले। घर छोड़ अजोधेया भागे खातिर छान - पगहा तुरवले बाड़े।सगुनी आपन नया समस्या लेके गुणानंद के लेके गुरुजी के आश्रम गइल। समस्या सुनते गुरुजी बोलले हरि कृपा। गुरुजी कहले रैदास बानी ह-
मन थिर होई त कोई ना सूझै, जानै जाननहारा
कह रैदास विमल विवेक सुखी, सहज सरूप संभारा।
गुणानंद ना समझले बात के त गुरुजी खोलके कहनीं कि गुणानंद अब तू गुणानंद ना रहलऽ रामानंद हो गइलऽ।चोला बदलऽ आ आश्रम में रहऽ ई रामजी के आदेश बा। गुणानंद से रामानंद हो गइनीं।सगुनी माथ पिटत घरे गइल।जात खा ढेर देरी ले ओकर आवाज सुनाई पड़त रहे कान में -
भूला गइलन संइया राम के नगरिया
गाँवे चल सगुनी अब रामे खेवइया।
सगुण के फेरा में निर्गुण ना भेंटाइल
ना रामजी मिलले,ना कृष्ण कन्हाई।
जेल में ढेर दिन ले सगुनी ना आइल त माथा खउराइल। गाँवे के महेशवा आइल त बतवलस कि सगुनी रामलला के सेवा में गाँव छोड़ अजोधेया चल गइल।केकर आसरा अब ओकरा रह गइल रहे? ओकरा मालूम रहे तोहरा आजीवन कारावास हो गइल बा। हमहूं जात बानीं बाकिर कहब तूहूं राम नाम के दान लेले बाड़, ओकर महिमा समझ आ अबो से लाग जा ओह में।सुनले बाड़ नूं कबीर बानी -
सहकामी सुमिरन करै पाबै उत्तम धाम
निहकामी सुमिरन करै पाबै अबिचल राम।
राम रहीमा ऐक है, नाम धराया दोई,
कहे कबीर दो नाम सूनि, भरम परो मत कोई।
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राँची, झारखंड
चलभाष - 9102246536
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