दुआरे घुर लगवलीं
अंगना मों झारि-झुरि दुआरे घुर लगवलीं कि जामि गइलँ ना, ऊजे अल्हर अमोलवा कि जामि गइलँ ना, अल्हर अमोलवा मों सींचहू ना पवलीं कि आइ गइल...
अंगना मों झारि-झुरि दुआरे घुर लगवलीं कि जामि गइलँ ना, ऊजे अल्हर अमोलवा कि जामि गइलँ ना, अल्हर अमोलवा मों सींचहू ना पवलीं कि आइ गइल...
भारतीय संस्कृति में हर प्रकार से विविधता देखल जा सकल जाला। ई विविधता भोजपुरी की गहना बन जाले। एगो अलगे पहचान बन जाले। इहे विविधते त अपना...
एगो लइकी कऽ जब बियाह होला तऽ ना जाने केतने सपना सजवले रहेले औरी ओही सपनन के पुरा होखे के साध ले के नईहर से ससुरा जाले बाकिर ससुरा के रंग...
लइकिन के जिनगी के साँच खङारत रितुराज जी के ई कबिता एगो लईकी से ओकर आवे वाला जिनगी कऽ बारे बतियावत बे। ई कबिता साफ-साफ देखावत औरी बतावत बे...
परस्तुत कबिता "गरीब के बेटी" समाज में फइलऽल ओ कुरीति पर बे जेवना के परिणाम के देखा रहल बा ,जेवन रोज हमनी के आस पास घटत बा। बे...
बाबूजी के हम रहुईं आँखि के पुतरिया राखसु करेजवा में मोर महतरिया आवते ससुरवा अघोरनी रे, सासु कहे कुलबोरनी। हवे मतवाली ह कुलछनी मतहिया सास...
का हो चाचा का हो भइया का हो दीदी का हो मइया कहिया समझ में आई दहेजवा से बड़का कवनो पाप न ह भाई। कब ले रॉब जातवे खातिर समाज आपण लजाई ...
गिरिजा-कुमार!, करऽ दुखवा हमार पार; ढर-ढर ढरकत बा लोर मोर हो बाबूजी। पढल-गुनल भूलि गइलऽ, समदल भेंड़ा भइलऽ; सउदा बेसाहे में ठगइलऽ हो ब...
एके कोखी बेटा जन्मे एके कोखी बेटिया। दू रंग नीतिया काहे कईल हो बाबू जी दू रंग नीतिया। बेटा के जनम में त सोहर गवईल अरे सोहर गवईल। हमार बेर...