
उड़ जा चिरई! - मुकुन्द मणि मिश्रा
उड़ जा चिरई दूर देश तू अब ना अईह टोला में, गँऊआ हमर भइल कसाई मार पकइहें घूरा में। तिनका -तिनका जोड़ बनवलू अंडा दिहलू खोंता में, ...
उड़ जा चिरई दूर देश तू अब ना अईह टोला में, गँऊआ हमर भइल कसाई मार पकइहें घूरा में। तिनका -तिनका जोड़ बनवलू अंडा दिहलू खोंता में, ...
बचपन के खेलवा छिनाय गइल मीतवा। माटी के गीतवा भुलाय गइल मीतवा।। ओका- बोका तीन तड़ोका लौआ लाठी चंदन काठी हाकी टाकी टेनिस-बैट आइल किरकिटव...
ऊँख के बोके दुख भइल बा । मिलत ना पइसा हूक भइल बा। रुठ गइल का किस्मत खुद से ? या हमनी से चूक भइल बा !! दिल्ली-पटना मूक भइल बा । गेंहूँ -...
रऊआँ सभ के सोझा मुकुन्द मणि मिश्रा जी के दू गो कबिता परस्तुत करत बानी। पहिलकी कबिता 'उड़ जा चिरई' आदमी के भीतर ढूकल स्व औरी स्व...