
भव सागर गुरु कठिन अगम हो
भव सागर गुरु कठिन अगम हो कौन विधि उतरब पार हो असी कोस रुन्हें बन काँटा असी कोस अन्हार हो असी कोस बहे नदी बैतरनी लहर उठेला धुंधकार हो नइहर...
भव सागर गुरु कठिन अगम हो कौन विधि उतरब पार हो असी कोस रुन्हें बन काँटा असी कोस अन्हार हो असी कोस बहे नदी बैतरनी लहर उठेला धुंधकार हो नइहर...
मन तू काहे ना करे रजपूती। असहीं काल घेरि मारत ह जस पिजरा के तूती। पाँच पचीस तीनों दल ठाड़े इन संग सैन बहुती। रंगमहल पर अनहद बाजे काहें गइ...