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महेंद्र मिश्र के चार गो कविता
ई त बूढ़वा दुलहवा बड़ा मजेदार - महेन्द्र मिश्र
मउजे मिश्रवलिया जहाँ विप्रन के ठट्ट बसे - महेन्द्र मिश्र
भोरहीं के भूखे होइहें चलत पग दूखे होइहें - महेन्द्र मिश्र
हम त जनलीं कि बबुआ इनाम दीहें - महेंद्र मिश्र
हमहूं त रहली जलके मछरिया - महेन्द्र मिश्र
मउजे मिश्रवलिया जहाँ विप्रन के ठट्ट बसे - महेन्द्र मिश्र
आवत राम रघुकुल चंद - महेन्द्र मिश्र
कोसिला सुमित्रा रानी करेली सगुनवाँ सें - महेन्द्र मिश्र
खेत खरिहानी जाली हाली-हाली खाली - महेन्द्र मिश्र
आपना पति के देखि रोई-रोई बात-करे - महेन्द्र मिश्र
अनका पति के देखि चार गाल बात करे - महेन्द्र मिश्र
नित-नित देखीले सपनवाँ हो रघुनाथ कुँवर के - महेन्द्र मिश्र
भोजपुरी क अमर गीतकार आ देश भक्त महेंदर मिसिर - केशव मोहन पाण्डेय
हथिया दंतरवा सोभे सोना के अमरीया हे - महेन्द्र मिश्र
कटहर खरबंदा कचनार ओ कदंब अंब - महेन्द्र मिश्र
सभका के देलऽ रामजी अनधन सोनवा - महेन्द्र मिश्र
राम लखन मोरा गोदी के खेलवना से - महेन्द्र मिश्र
आहो कान्हा ई का कइलऽ - महेन्द्र मिश्र
चिहुँकेली बार-बार अँचर उतार चले

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