
तारकेश्वर मिश्र 'राही' के तीन गो कविता
सेनुर दूध लड़े अपने में सीता उहाँ गुरुदेव से पूछति, कइसन वीर महीपत बाने काहे बदे वन युद्ध छिड़ा, जवना में मोरा ललना रत बाने आवत ना ह...
सेनुर दूध लड़े अपने में सीता उहाँ गुरुदेव से पूछति, कइसन वीर महीपत बाने काहे बदे वन युद्ध छिड़ा, जवना में मोरा ललना रत बाने आवत ना ह...
आदमी के सतावला से का फायेदा दिल प पत्थर चलवला से का फायेदा नेह अंगना गेडाईल बटाईल हिया त भीती अईसन उठवला से का फायेदा खेत बारी बट जाई ...
दिया के अजोर ह ई जिंदगी। नदी के तरंग ह कि खेल के पतंग ह। कि मेला के शोर ह ई जिंदगी। चार दिशा गन्ध उठे फूल क पराग ह, कि सावन में भरल पुरल...
सीता उहाँ गुरुदेव से पूछति, कइसन वीर महीपत बाने काहे बदे वन युद्ध छिड़ा, जवना में मोरा ललना रत बाने आवत ना हिय चैन मोरा, दिन-राति विय...