भारी भरम बा - देवेन्द्र कुमार राय
आगे जाईं कि पिछे लखात नइखे, चुपे रहीं कि बोली बुझात नइखे। जमते जमतुआ जुगजितना भइल, हमरा जोडी़ के केहू भेंटात नइखे। जे बइठल बा उहे घवाहिल भइल...
आगे जाईं कि पिछे लखात नइखे, चुपे रहीं कि बोली बुझात नइखे। जमते जमतुआ जुगजितना भइल, हमरा जोडी़ के केहू भेंटात नइखे। जे बइठल बा उहे घवाहिल भइल...
जब भाषा गिरवी हो जाला सिंहासन के दरबार में, जब पापी के बचावे खातिर कलम चलेला अखबार में। जब सूरज उगे से पहिले उनका दफ्तर में जालन, लागे अइसे ...
जन्म लेते पूत के उछाह से भरेला हिय, गज भर होइ जाला फूलि के ई छतिया। पाल-पोस के बड़ा करेला लोग पूत के आ, नीमने से नीमने धरावे इसकुलिया। होखते ...
कुकुरन के बारात कुकुरन के बारात लेअइलऽ समधी तूँ सधुअइलऽ जूता पर नजर इहनिन के घाउंज तूँ करवइलऽ। कमे कुकुर बाड़न सन ई जवन टांग ना टारसन जगहा क...
सबके चाचा भईया कहएम दादा दादी फुआ कहएम हम बुरबक बानी बुरबक रहेम लोग कहेला ना जहिय बिहार जईब तऽ तु खईबऽ मार गोली बंदुक अउर गुंडा राज काहे ...
का हो बसंत भाई, ईहे होई ? जलचर थलचर नभचर सभमें पइसि पइसि के सभका के तू जगावेलऽ सुस्ती पस्तीआउर निराशा के तू दूर भगावेलऽ सूखल के हरियर क देलऽ...
१ गीत कवित हम का जानीं भइया पानी बिनु बे पानी जल, जंगल, जमीन से बेदखल खोजत बानीं पानी कहँवा गइल नदी सरोवर ? ई बता दऽ भइया। राज - पाट जेहि हा...
मिलल की जइसे भूलल थाती लिखल तहार मिलल जब पाती। रोजे रात निहारत रहनी हीते-नाते सबसे कहनी बहल लोर मोर साँझ-पराती। मन में, बहुते बिसवास रहल हिय...
कविता में हम छींकब सगरो कविता में हम खोंखब लाग रहल बा तब जाके हमहूँ सम्मानित होखब। हम का जानी साहित्य ह का, का होखेला ई भाषा बाकिर जे लिख के...
खेते से जब खटिके फलाने, अपने घरे में आवेले। लेइ लोटा में पानी दुल्हनिया, गुड़े के साथे धावेले।। घुट-घुट एक्कइ सांस में पूरा लोटा चाटि गयेन भ...
पानी अँखिया के मरल, बदलल जग के रीत। लंपट ठाढ़ बुलंदी पर, पनिहर बा भयभीत॥1 ॥ बनि जाले जिनगी सहज, सुखदाई के इत्र। मिलले अगर सुभाग से, एको मनगर ...
फगुआ के अनवाध में, चइत दुआरे ठाढ़। ललकी किरिन परात के, तकलसि घूघा काढ़। मादक महुआ गंध में, डूबल बनी समूल। हवा कटखनी बिन रहल, मउनी भरि-भरि फू...
इहाँ हर केहू, हर बात के, छुपावत बाटे कहाँ खोलिके केहू कुछ बतावत बाटे। इहवाँ केहू ना, प्रीत के मरम समझत बा सभे हंसिके इहवाँ उधुवाँ उठावत बाटे...
दिन बहुराइल बा अब जाके सदियन के ऊँघी टूटल बा चमक उठल बा मन मरुआइल मनसायन जे घड़ी बनल बा । सूरुज के ना आवल लउके बेरा डूबल कहाँ बुझाओ आन्ही-पान...
अवधपुरी अईलन अवधऽ बिहारी हो, बलिहारी जाईं ना। चलऽ आरती उतारीं हो, बलिहारी जाईं ना।। माई कोसिला जी के हियरा जुड़ाईल, भरतऽ भुआली जी के मनसा पू...
ज्ञान गुन रीति लूर आ जाई। प्यार होते सहूर आ जाई। डीठि लागल रही निसाना पर कुछ ना कुछ तऽ जरूर आ जाई। जाम साकी शराब मौसम बा घूँट मारीं सुरूर आ...
जब हम लइकई मे चउथी-पाँचवी मे पढ़त रहनी, ओह घरी रेडियो पर संझा के बेरा खेती-किसानी पर एगो प्रोग्राम आवत रहे, जवना के शुरू होते ई सुने के मिले ...
पवना बेनियाँ डोलावे, बदरा रस बरसावै गावै झूम झूम मनवाँ सिवनवाँ में नाचै निरखि-निरखि दरपरनवों में। भिनसहरे जैतसार गीत के बोल करेज करोवै जइसे ...
बहुत काम बा अइसन जेवर लागे ना जरूरी देखला पऽ दूर से कब्बो बाकिर कइल बहुत जरूरी; जइसे झारलऽ पुरान कपड़ा जाड़ा में भा पपनी पर चढ़ल धूर! जेवर च...
बेफिकिर नदिया नहाइल ना भुलाइल आजु ले। धूरि में देहिया सनाइल ना भुलाइल आजु ले। जेठ के तपती दुपहरी आम की बगिया में जा तुरि टिकोरा नून खाइल ना ...