मतलब तोहरो से कुछू निकलत होई - राजीव उपाध्याय

मन-मन सोचि-सोची काँहे मुसका लऽ
केहू ना केहू सूनले तऽ होई।
बात जेवन तूँ कहब केहू से
केहू ना केहू कहले तऽ होई॥

कुछू नाही बावे तोहसे इहाँ
तोहरे से सभ कुछ, सभका से तूँ।
इहे बावे रीत-मीत सगरे इहाँ
केहू ना केहू मिलले तऽ होई॥

रूप सिंगार सभ बावे मतलब के
आदमी जीएला पी के जहर के।
एने-ओने छपिटा के काँहे अहकत बाड़ऽ
मतलब तोहरो से कुछू निकलत होई॥
------------------------------------------------------

लेखक परिचय:-
नाम: राजीव उपाध्याय
पता: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश
लेखन: साहित्य (कविता व कहानी) एवं अर्थशास्त्र
संपर्कसूत्र: rajeevupadhyay@live.in
दूरभाष संख्या: 9650214326
फेसबुक: https://www.facebook.com/rajeevpens

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.