संपादकीय: मैना: वर्ष - 10 अंक - 121 (जनवरी 2024)

सिय राम मय सब जानी


सगरी जग अउरी हर बेकति में प्रभु श्रीराम के वास बा। एह जग में केवनो अइसन जगह भा बेकति नइखे जेकरा में प्रभु श्रीराम के वास नइखे। तुलसीदास जी के ई उद्घोष एह बात से ई साफ बा कि श्रीराम सर्वव्यापी बानीं। उहाँ के अस्तित्व पऽआज के बहु-पूजा पद्धतिन अउरी मजहबन के केवनो परभाव नइखे! उहाँ के अस्तित्व निरपेक्ष बा अउरी प्रभु श्रीराम केवनो सम्प्रदाय भा पूजा पद्धति के ना हो के बलुक सभकर बानी!

श्री अयोध्या जी में प्रभु श्रीराम के मन्दिर के निर्माण केवनो पूजा पद्धति भा धर्म के जयघोष नइखे बलुक ई भारत के सनातन सभ्यता के जयघोष बा। एमें केवनो बेकति के जय, पराजय भा विरोध के संदेश नइखे बलुक ई जयघोष बा ओह सनातन सभ्यता के जेवन सभ्यता हर जीव में ईश्वर के देखे के आदी बे। ई जयघोष बा ओह जीवनमूल्यन के जेवन ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ के उद्घोष से जीव मात्र के कल्याण के कामना करेला। ई उद्घोष बा ओह भारत के जेवन ‘वसुधैव कुटुम्बकं’ के जीवन मूल्यन के स्थापना करेला।

सनातन सभ्यता में जनम लिहला से ले के मृत्यु ले राम सबद हर डेग पऽ मानव के संगे खड़ा रहेला। राम सबद शुभ के अति शुभ बनावेला तऽ दुख में ढ़ाढ़स देला। राम सबद अउरी प्रभु श्रीराम के महिमा एतना व्यापक बा कि एह जगत में केवनो सबद भा व्याकरण नइखे जेवना से सहारे प्रभु श्रीराम के सम्पूर्ण व्याख्या हो सके। तबो एतना जरूर कहल जा सकेला कि प्रभु श्रीराम भारत के मूल तत्व अउरी आधार बिन्दु बानी। भारत के सम्पूर्ण सभ्यता प्रभु श्रीराम पऽ ना खाली अवलम्बित बे बलुक राम नाम में भारत के सूक्ष्म जीव अउरी स्थूल शरीर दून्नू के वास करत दोलन कर रहल बा।

आज ले प्रभु श्रीराम के ले के जाने केतने व्याख्या आ स्वरूप सोझा आइल बा। सन्त रविदास से ले के गुरू नानकदेव, सन्त कबीर अउरी सन्त तुलसीदास से आगे बढ़त रामनामी सम्प्रदाय ले प्रभु श्रीराम के जाने केतने रूप, स्वरूप अउरी भाव के उद्भव भइल बा, अउरी भविष्य में जाने केतने रूप, स्वरूप अउरी भाव लोगन में मन में जनम ली, कहल असम्भव बा। बस ई बात पुरा विस्वास से कहल जा सकेला कि प्रभु श्रीराम सनातन सभ्यता के ऊ सार्वभौमिक सत्य बाड़ें जेवन चराचर जगत में चारों ओर फइलल बाड़ें।

प्रभु श्रीराम के ले जाने केतने तरह वाद-विवाद के जनम दिहल जाला। एक ओर जहाँ प्रभु श्रीराम के करोड़ों लोग पूजा करेला तऽ दूसरी ओर आलोचना करे वाला लोगन के कमी नइखे! एतने ना बलुक जे तरे बीसवीं सदी में कवि इकबाल प्रभु श्रीराम के ‘इमाम-ए-हिन्द’ कहि के एगो बहुत छोट सीमा में बान्हे के परियास कइलें ओही तरे आजो कुछ बुद्धिजीवी प्रभु श्रीराम के एगो सीमा में बान्हे के बहुत परियास करेला बाकिर ऊ लोग भूला जाला कि खाली स्थूल शरीर के बान्हल जा सकेला ना कि सूक्ष्म जीव के। प्रभु श्रीराम सनातन सभ्यता के ऊ सूक्ष्म जीव हवन जेवन अपना समय अउरी जुग के हिसाब से अपना आदर्श के आधार पऽ स्थूल शरीर के जनम देत रहेलें!

राजीव उपाध्याय
संपादक
मैना

मैना: वर्ष - 10 अंक - 121 (जनवरी 2024)

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