कह! आखर केवन लिखीं
कि बात तोहरा ले चहुँपे
अउर अझुराइल गिरह
सभ खुल जाओ
कि हम मन के पाँख पसार
आसमान अँजूरी में भर लीं।
भरि लीं हम उहो कोना
अँकवारी में
जाहाँ ले ना जाओ
सूरूज के दँवक
अउरी पानी बरखा के
कि सूखल बा मन
जाने कब से।
कुछ आई
सोखी हमके
जइसे कागज सोखे
सियाही के
पर ई आँखि
कब ले जागी
उहाँई लागत बा अब
कह त देर थोरी
एही माटी में सूति लीं।
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कि बात तोहरा ले चहुँपे
अउर अझुराइल गिरह
सभ खुल जाओ
कि हम मन के पाँख पसार
आसमान अँजूरी में भर लीं।
भरि लीं हम उहो कोना
अँकवारी में
जाहाँ ले ना जाओ
सूरूज के दँवक
अउरी पानी बरखा के
कि सूखल बा मन
जाने कब से।
कुछ आई
सोखी हमके
जइसे कागज सोखे
सियाही के
पर ई आँखि
कब ले जागी
उहाँई लागत बा अब
कह त देर थोरी
एही माटी में सूति लीं।
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लेखक परिचय:-
नाम: राजीव उपाध्याय
पता: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश
लेखन: साहित्य (कविता व कहानी) एवं अर्थशास्त्र
संपर्कसूत्र: rajeevupadhyay@live.in
दूरभाष संख्या: 7503628659
ब्लाग: http://www.swayamshunya.in/
फेसबुक: https://www.facebook.com/rajeevpens
पता: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश
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अंक - 105 (08 नवम्बर 2016)
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