संपादकीय: मैना: वर्ष - 11 अंक - 122 (फरवरी-मई 2024)

मैना के दस बरिस

 ई बात 2013 के हऽ। ओह समय इन्टरनेट भोजपुरी भोजपुरी साहित्य कम उपलब्ध रहल। बेवसाइट के रुप में डॉ ओमप्रकाश जी शुरू कइल भोजपुरिका आ फेसबुक पऽ आखर। एकरा सिवाए भोजपुरी खाती बहुत कम आ छिटपुट साहित्य उपलब्ध रहे। थोरी बहुत भोजपुरी के कविता कविताकोश पऽ उपलब्ध रहली सऽ। ओकरा बाद भोजपुरी पऽ बहुत कुछ ना रहल। अइसन नइखे कि 2013 से पहिले इन्टरनेट पऽ भोजपुरी के चलन ना रहे। जरूर रहल। याहू पऽ एगो भोजपुरी के बहुत एक्टिव ग्रुप रहल जेवन बाद में एगो बेवसाइट के रूप लिहलस बाकिर लम्हर ना चल पाइल। अउरी ए तरे इन्टरनेट पऽ भोजपुरी के खाली दूगो ठेहा नजर आवे। एगो भोजपुरिका आ दूसरका आखर। एके देखि के 2013 के आखिर में मन में आइल कि भोजपुरी के एगो ऑनलाइन पत्रिका रहे के चाहीं।

कई महीना ले मन में ई बात चलत रहल बाकिर समझ ना आवे कि कइसे होई? केकरा से कहल जाओ? बाकिर 2014 के शुरुआत में मन बनि गइल कि केहू से कहला के बढ़िया बा कि ई परियास खुदे कइल जाओ। बाकिर तब्बो मन बहुत संदेह रहे। एह बात के लेके पिता जी बात-चीत कइनी कहलें कि ठीक बा शुरू करऽ। ए पर हम कहनी सम्पादक तोहरा बने के परी तऽ कहलन ठीक बा बाकिर ई ढेर लम्हर ना चली। जदि तू इके अपना दमे चला सके लऽ तऽ ठीक बा। हमरा भरोसे कुछ मति करऽ।

उनकर ई बात सुनि के कई हफ्ता सोच में रहनि। बाकिर अप्रैल के आखिर में मन बना लिहनी कि परियास कइल जाओ। जदि हो सकी तऽ ई उत्जोग आगे बढ़ावल जाई ना तऽ देखल जाई। एह मन के संगे आज से दस बरिस पहिले 11 मई 2014 में मैना के पहिला अंक आइल।

दस बरिस के एह जतरा के पीछे मुड़ि के देखला पऽ मन में बहुत तरह के भाव आवता। कुछ संतुष्टि के भाव बा तऽ ओकरा ले बेसी असंतुष्टि के भाव बा। जब मैना शुरु भइल तऽ मन में भाव रहल कि भोजपुरी साहित्य के बिना केवनो विचारधारा से जोड़ले पत्रिका ऑनलाइन प्रकासित होई अउरी दिन-प-दिन एकरा स्तर में सुधार होत जाई। एक दस बरिस में मैना विचारधारा के आसक्ति से एकदम बाँच के निकल गइल बाकिर जब बात पत्रिका के स्तर के आवत बा तऽ मन में असंतुष्टि के भाव धऽ लेता।

पत्रिका के ले के पाठकन आ रचनाकारन के आपन राय होई अउरी जेवन होई ठीक होई बाकिर पत्रिका में सुधार के बहुत आवश्यकता बा अउरी एक वर्षगांठ पऽ पत्रिका खाती कुछ निरनय लिहल महत्त्वपूर्ण बा। पिछिला दस साल में जेवन काम ना पाइल ओके करे के जरूरत बा। बीतल समय के ना तऽ कुछ कइल जा सकत नाही बदलल। बाकिर भविष्य में पत्रिका में सुधार कइल बहुत जरूरी बा जेवना में तीनगो महती के बात बा।
  • पहिला पत्रिका अनियमित हो गइल बे। ई कहीं से ठीक नइखे। अगिला महिना से हर हाल में पत्रिका के नियमित कइल जरूरी बा।
  • दूसरा पत्रिका में छपे वाला साहित्य के स्तर में बहुत सुधार नइखे भइल। अगिला अंक से पत्रिका में प्रकासित होखे वाला साहित्य के स्तर सुधारे के बा।
  • तीसरा मैना में पिछ्ला दस साल में कुछ खाली सौ रचनाकारन के रचना सोझा आ पाइल बा जेवन बहुत कम बा। अगिला अंक से अधिका-से-अधिका रचानकारन तक पहुँचे के परियास करे होई।

राजीव उपाध्याय
सम्पादक
मैना 

मैना: वर्ष - 11 अंक - 122 (फरवरी-मई 2024)

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