जा इहवाँ से उफ्फर परि जा - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

लउवा लाठी, चन्नन काठी चाट 
पोंछ के चिक्कन कइला 
कुल्हि पर बस लूट मचवलें 
चुरुवा भर पानी मे मरि जा॥ 

दिन मे करत छिनैती फिरलें 
जा इहवाँ से उफ्फर परि जा॥ 

रतिओ घुसी सेन्ह मे गवलें 
लाज न तोहरे तनिकों लागल 
गरही मे जाके तू गरि जा। 
जा इहवाँ से उफ्फर परि जा॥ 

केंकुरल मनई मंहगइया से 
लागत डर नवका भइया से 
तोर संघतिया चोर उचक्का 
झूठ के कर पहाड़ रइया से 
तहरे डंका बा सगरो बाजल 
दिन अछते देशवो चरि जा। 
जा इहवाँ से उफ्फर परि जा॥ 

जाहिल जब कुरसी पर पड़लें 
नीमनका पर खुदही अड़लें 
सभके लहचह , लमहर बाटे 
इजतियो पर खूंटी गड़लें 
आफत बीपत तहरे साजल 
सूखल पतई लेखा झरि जा। 
जा इहवाँ से उफ्फर परि जा॥ 

चारा कोइला टू जी थ्री जी 
कुछहू ना अब बाचल एजी 
चुवत पलानी टूटल खटिया 
हमरे ला असवासन भेजी॥ 
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लेखक परिचय:-
इंजीनियरिंग स्नातक;
व्यवसाय: कम्पुटर सर्विस सेवा
सी -39 , सेक्टर – 3;
चिरंजीव विहार , गाजियाबाद (उ. प्र.)
फोन : 9999614657
ईमेल: dwivedijp@outlook.com

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