देशप्रेम के लहू बढ़ावत संग्रह 'माटी करे पुकार' - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

मन के सुघरई जब कविता, गीत, गजल का रूप में सोझा आवेले त ओकर सुघरई बखान का बहरे होला। अगर ओहमें देश प्रेम के छउंक लागल होखे त उ सुतलो मनई के चेतना के जगा देवेला। मन के उछाह फेर अरि मर्दन खाति मचले लागेला। रचनाकार अपना सामाजिक सरोकारन के संगे देश,समाज आ प्रकृति के जोगावे आ फरे-फूले जोग बनावे में आपन सगरी तागत लगा देवेला। भोजपुरी साहित्य जगत के पितामह स्व0 चौ0 कन्हैया प्रसाद सिंह एगो अइसने बेकती रहनी जेकरा भितरी साहित्य,समाज आ देश खाति नेह-छोह के अजस्र धार बहत रहे। उनुका लेखनी से निकसल रचना पढ़ला का बाद पढ़निहार के मन में राष्ट्र प्रेम के हिलोर उठे लागेला। 'माटी करे पुकार' अपना में राष्ट्रीयता, प्रकृति प्रेम आ हास्य-व्यंग के संगे माटी के गीत आ गजल सजा-सँवार के समेटले बा, जवान सराहे जोग बा। एह संग्रह में कविता, गीत, गजल मिला के कुल 100 गो रचना बाड़ी सन। कुल्हि रचना अपने भाव आ महातिम के संगे बाड़ी सन। 
देश के लोगन के मनोभाव के झकझोरत उनुका उनही के अतीत ईयाद करावत आजु के नेता लोगन पर करारा चोट करत रचनाकार कहि रहल बाड़ें- 
"पी पी चाह पचावस रिस्वत, इहे देश के सेवा 
देश द्रोहियन के दिआत बा, राख़ जेल में मेवा 
एक बराबर कइल जा रहल लउड़ी के महारानी के। 
भूल गइल कइसे ई दुनिया, सहीदन के कुरबानी के।" 
पड़ोसी देसन के बेवहार से एगो संवेदनशील रचनाकार के लेखनी आगे नु उगली- 
"लागी चमेटा त 
निसा भुलाई 
कहवाँ से पइब तूँ 
घरहूँ से जाई 
भारत ह बड़ नदी अहथिर धार बा।" 
(चीन से) 
"'छत्रपति' 'राणा' 'सुभास' के 
बंसज तू बतला दs 
पाल रहल सपना जे दुसमन 
ओमे आग लगा द। " 
(माटी करे पुकार) 
सामाजिक रिस्तन के छीजत स्थितियन से अतना जागृत रचनाकार भला कइसे अछूता रह सकेला। ओकर मन दुखी हो जाला- 
"बुढ़िया मतरिया के घर से खदेरी मारित 
बाबूजी के करित उघार 
भगिना भतिजवा के लगे नाही आवे दिहित 
हित-नात छोड़ितें दुआर।" 
भलहीं ई संग्रह 80 के दसक में तइयार भइल होखे, रचना के काल-खंड पुरान होखे बाकि रचनन के ताजगी अजुवो जस के तस बा। अजुवो रचनन के ओतने प्रासंगिकता बा, जतना ओह घरी रहल होखी। एह बाति खातिर कवनो प्रमाण देवे के जरूरत नइखे, पढ़निहार लोग पढ़ के महसूस कर सकेला। हई देखल जाव- 
"तन के दीप, नेह के बाती 
जरी देस खातिर दिन-राती 
हिन्दी-तमिल-बँगला-उड़िया, 
भोजपुरी सबके दुलराइब!"
भा चीन के लेके रचनाकार के भावना- 
"अँखिया देखाई केहू
आके जब समनवा 
ओकरा खातिर बन जाइब 
काल के समनवा।" 
रचनाकार के एह ललकार के असर गलवान घाटी में लउकियो गइल। 
अपना देश के रक्षा खातिर अपने आराध्य के सुमिरल भा ओके पुकारल भारत के रहवइयन में देखाइये जाला। इहो संग्रह एकर प्रमाण बा- 
"चीन करी के चढ़ाई 
बहुत करेला ढिठाई 
अँखिया खोली तिसरकी, 
शक्ति के देखलावे पड़ी 
चीन के जरावे पड़ी ना। " 
चीन त चीन पाकिस्तानों के करतूत पर रचनाकार चेतावे में जरिको पछुआइल नइखे। कवि त इहाँ तक कहि देले बाड़ें- 
"बंग संग बाटे नाहि, सिंध साथ देत नइखे 
धधकत रोजे बलुचिस्तान 
ठनल लड़ाई तूही लोग मत दोष दिही 
मिटी जब जाई पाकिस्तान" 
देशप्रेम के रचना त एह संग्रह के प्राणशक्ति बाड़ी सन। प्रकृति गीतकारन के हमेसा लोभावेले। एह संग्रह में कवि पर प्रकृति से लगाव आ ऋतु गीतन के उपस्थिति पढ़निहार लोग के जरूर अपना ओर खींची। आजु के नारी के बेवहार आ करतबो पर कवि के लेखनी खूब चलल बा। त नारी के बिरहो के बाति नइखे छूटल। कतो-कतो निरगुनो के छउक एह संग्रह के हर उमिर के लोगन खाति पठनीय बना रहल बा। संग्रह के काव्य-शिल्प पर बात कइल सुरूज़ के दियरी देखावे लेखा लागी। संग्रह में गजल के उपस्थिति अपने पूरे रंग में बा। कतो-कतो प्रूफ के गलती जरूर भेंटाइल बाकि उ ढेर नइखे। एह संग्रह के सम्पादन में संपादक दिलीप कुमार जी पूरे मनोयोग से लागल बाड़ें,अइसने कुछ कहानगी प्रबंध संपादको के बा। 
कुल मिलाके प्रबंध संपादक भाई कनक किशोर जी अपने पुत्र होखला के धरम बहुते नीमन से निभा रहल बानी, ई प्रणम्य बा। संपादक दिलीप कुमार जी के साधुवाद जे आपन बहुमूल्य समय एह कुल्हि रचनवन के सोझा लिआवे में दिहनी। एकरा संगही प्रकाशन के कर्म के जिमवारी से निभावे खातिर सर्वभाषा ट्रस्ट प्रकाशन के साधुवाद। रचनाकार स्व0 चौ0 कन्हैया प्रसाद सिंह जी के नमन करत आ एह संग्रह 'माटी करे पुकार' के सफलता के कामना करत हम अपने लेखनी के विराम दे रहल बानी। 
पुस्तक का नाम- माटी करे पुकार 
रचनाकार- स्व0 चौ0 कन्हैया प्रसाद सिंह 
संपादक-दिलीप कुमार 
मूल्य- रु0 250/- मात्र 
प्रकाशक- सर्वभाषा ट्रस्ट प्रकाशन 
नई दिल्ली 
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 
संपादक 
भोजपुरी साहित्य सरिता






मैना: वर्ष - 7 अंक - 120 (अक्टूबर - दिसम्बर 2020)

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