हरि भइया राम राम - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

जब हम लइकई मे चउथी-पाँचवी मे पढ़त रहनी, ओह घरी रेडियो पर संझा के बेरा खेती-किसानी पर एगो प्रोग्राम आवत रहे, जवना के शुरू होते ई सुने के मिले “हरि भइया राम राम”। ओह प्रोग्राम मे खेती-किसानी के बाति के संगे गीत गवनई होखे, जवना के सुने खाति अगल–बगल के ढेर लोग जुटत रहने। कबों कबों रेडियो बन्न मिले त लोग बोलियो दें कि अरे चच्चा भा दद्दा रेडियवा के चालू करा, “हरि भइया” के आवे के बेरा हो गइल बा। हमहन लइका बुद्दि ई क़हत भाग जायल जाव कि चला लोग नाही त जरिकों हल्ला भइल त हमनियों के हरि भइया राम राम हो जाई। ई प्रोग्राम बरिसो बरीस रेडियो पर चलल। सुनत-सुनत मस्ती मे हमनियों के एक दोसरा क नाँव लेके भइया राम राम कहिके हंसत रहीं जा।एक दोसरा के ओकर नांव लेके फलाने भइया राम राम, फलाने भइया राम कूल्हि छोट छोट लइका एक दोसरा के बोले लगल रहलें। ओह कार्यक्रम के चलते सबही के लोकगीत उहो भोजपुरी सुने के मिल जात रहल, इहे कारन रहे कि संझा के बेरा जब समय हो जाय त सब केहु बेगर बोलवले जुट जात रहे।

एगो बड़ा सुखद घटना 2017 मे हमरा संगे घटल। हम बनारस मे अपने एगो रिस्तेदार किहाँ गइल रहनी। अचके मे एक दिन अग्रज डॉ अशोक द्विवेदी जी के फोन आइल आ हालचाल भइला के बाद जब हम बतवनी कि एह घरी हम बनारसे मे बानी त उ हमरा के एगो काव्य गोष्ठी मे आवे के कहलें। उनुकर आशीष पावे आ कुछ नया लोगन से मिले के लोभ मे हम हामी भर देहनी। आउर नियत समय पर उहाँ खाति हम एगो ड्राइवर आ अपने रिस्तेदार के संगे मिले खाति चल देहनी। बीच मे एगो जगह पर मिले के बात भइल, काहे से कि हम गोष्ठी वाला जगह ना जानत रहनी। ओह दिन इन्द्र देव आपन पूरा कृपा दृष्टि बनारस पर बनवले रहलें। बनारस के भीड़ भाड़ वाली सड़क से हमनी के नियत जगह पर पहुँच गइनी सन, जहवाँ डॉ अशोक द्विवेदी जी हमनी के जोहत रहनी। मुलाक़ात के संगे उनुकर आशीष लीहला के बाद हमनी के गोष्ठी वाला जगह खाति चल दिहनी सन। उहाँ पहुंचले के बाद पता चलल कि उ जगह भोजपुरी के एगो कवि विजय शंकर पांडेय जी के घर रहल। विजय शंकर पाण्डेय जी से हमार पहिले एकाध बेर मुलाक़ात भइल रहे। एही से उ हमरा के पहचान लीहने। हमनी के पहुंचे के पहिले उहाँ 4-5 लोग पहुँच चुकल रहने। डॉ अशोक द्विवेदी जी बारी-बारी से सबसे परिचय करवनी। एही क्रम मे जब आदरणीय हरीराम द्विवेदी जी के नाँव लीहने त हम तनिका चौंक गइनी, हमरे चेहरा के देखते उ हंसत बोल पड़ने “हरि भइया राम राम” वाला हरीराम द्विवेदी जी बानी। हमरे खाति त अचके मे उ दिन कबों न भुलाए जोग दिन बन गइल। हमरे मन मे खुसी के झरना फूट चुकल रहे।जेकर बोली सुन-सुन के लइकई बीतल होखे, भोजपुरी के ओह महान आतमा से मिले के सुयोग बनल भागि के बात होला। ओह सुखद पल के इयाद मन मे हर घरी ताजा बनल रहेले। एह घरी भोजपुरी खातिर आपन जिनगी अर्पित करे वाला लोगिन के बात होखी त पहिलका नाँव आदरणीय हरिराम द्विवेदी जी के ही आई। चलत-फिरत भोजपुरी साहित्य के मजगर बरगद के गांछी लेखा भोजपुरी के जीये वाला मनई, जेकर लीखल कई गो संस्कार गीत आम लोगन के गीत बन चुकल बाटे, 14-15 गो किताब के लिखे वाला संकोची सुभाव आ एगो लमहर शिष्य लोगन के शृंखला राखे वाला सोझबक मनई बानी द्विवेदी जी।

कवि गोष्ठी आदरणीय हरीराम द्विवेदी जी के अध्यक्षता मे शुरू भइल। माँ सरस्वती के प्रतिमा पर माला चढ़ा के आउर दियरी जरा के गोष्ठी के सुखद शुरुवात भइल। बनारस के सुविख्यात कवि लोगन के बीच मे कविता पढे के ई हमार पहिला अवसर रहे। ओह गोष्ठी मे हम आपन तीन गो भोजपुरी कविता पढ़नी, जवना के डॉ अशोक द्विवेदी, डॉ अर्जुन तिवारी जी के संगे आदरणीय हरिराम द्विवेदी जी के आशीर्वाद मिलल। गोष्ठी अनवरत आगे बढ़त रहल, गवें गवें उहाँ जुटल सब कवि लोग आपन-आपन कविता भा गीत पढ़ने। अध्यक्ष के नाते आदरणीय हरिराम द्विवेदी जी सबसे बाद मे आपन कविता, गीत सहित कई गो रचना सुनवलें। उहाँ उपस्थित सभे लोग आत्म विभोर होके उनुका सुनत रहे। जइसही एगो खतम होखे, दोसरा के माँग होखे लागे। घंटा भर ले इहे क्रम चलल, आदरणीय हरिराम द्विवेदी जी आपन कई गो गीत आ कविता सुनवनी।उनुकर एगो गीत जवन हमरा मन के झकझोरेले,उ भोजपुरियत आ लोक संस्कार के बचावे के खाति बा,संजोग से उनुका से सुने के मिलल-
“अयना मे अंजोरिया बसाय रखिह
ओके सगरी उमिरिया जोगाय रखिह
रहि न पावे अन्हरिया कतौ मितवा
अंगनइया मे दीयना जराय रखिह”
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 
संपादक 
भोजपुरी साहित्य सरिता





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