बात बनउवल - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

मय दुनियाँ में कवि जी अउवल
कविता हउवे बात बनउवल।

गढ़ीं भले कवनों परिभाषा
मंच ओर तिकवत भरि आशा
गोल गिरोह भइया दद्दा
साँझ खानि के पूरे अध्धा।
कबों कबों त मूड़ फोरउवल। कविता हउवे.....

कवि के कविता, कविता के कवि
उनुके खाति कबों उपमा रवि
अब त ज़ोर जोगाड़ू बाटै
पग पूजी के चानी काटै।
कबों कबों के गाल बजउवल। कविता हउवे.....

कुछ के चक्कर भारी चक्कर
ज्ञान कला के लूटत जमकर
बोअल जोतल खेती अनके
बेगर लाज खड़ा बा तनके
कबों कबों के टांग खिंचउवल। कविता हउवे.....

कुछ इनकर त कुछ बा ओनकर
थपरी पिटाई अपने कहकर
थेथरइयो में कटिहें कान
सुनिला बबुआ उनुकरे मान।
कबों कबों के नाँव हँसउवल। कविता हउवे.....
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
संपादक
भोजपुरी साहित्य सरिता

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