गुजरिया लजा गइलीं हों - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

पह फटते किरीनिया दुलराइल
गुजरिया लजा गइलीं हों॥

छूटि गइलें घरवा
छुटल नइहरवा हो।
सइयाँ पर अपने मोहा गइलीं
रस बरिसा गइलीं हो॥

मइया के मिसरी अस बोलिया
भतीजवा के ठिठोलिया हो ।
सइयाँ पर अपने लुटा गइलीं
भोरही शरमा गइलीं हो॥

सुधिया के सुघर बिछवना
मइया क खेलवना हो।
बबुआ के आगु सभ भुला गइलीं
नेहिया लगा गइलीं हो॥

पह फटते किरीनिया दुलराइल
गुजरिया लजा गइलीं हों॥
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लेखक परिचय:-
इंजीनियरिंग स्नातक;
व्यवसाय: कम्पुटर सर्विस सेवा
सी -39 , सेक्टर – 3;
चिरंजीव विहार , गाजियाबाद (उ. प्र.)
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