घरे - दुआरे सगरों शोर
बनवा नाहीं नाचल मोर
कइसे काम चलइहें मालिक॥ कइसे -----॥
हेरत हेरत हारल आँख
केकर कहवाँ टूटल पांख
सात पुहुत के बनल बेवस्था
अब कइसे बतइहें मालिक॥ कइसे -----॥
बिन हरबा हथियार चलवले
कूल्हि जनता के मन भवलें
गाँव शहर के महल अटारी
कूल्हि खोल देखइहें मालिक॥ कइसे ----॥
अकुताही मे भभकल दियरी
छुटल उनुका उबटन पियरी
गाँठ भइल बेकार अचानक
केकरा से बतइहें मालिक॥ कइसे -------॥
नया नवेला बीरवा जामल
रोज सबेरे लाइन लागल
भरल तिजोरी कागज लेखा
खुदही आग लगइहें मालिक॥ कइसे -------॥
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संपादक: (भोजपुरी साहित्य सरिता)
इंजीनियरिंग स्नातक;
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