मैना के बखरा - विद्या शंकर विद्यार्थी

समय के साक्षी बा भोजपुरी साहित्यिक पत्रिका के संपादक श्री राजीव उपाध्याय जी के लगन, ललसा आ उत्साह। जवन तीनों मिल के भोजपुरी के बरियार काम क के सभका आँखी के सोझा परोस दिहले बा। अइसन लगन, ललसा आ उत्साह केहू केहू में पावल जाला। काम करे ओला के बात मिलावल जाला। कि एह काम के मूर्त रूप देबे में केतना पसेना गारे पोछे के परल होई। थरिया में भोजन असहीं ना नू सोझा परोसा धरा जाला। हाथ जारे के परेला। चाउर सींझ के भात भइल कि ना। रोटी तवा पर सेंकाइल कि ना। ई कुल्ही करे में भाप लाग जाला। बाकि भाप लगन ललसा आ उत्साह के आगे कुछ ना बुझाला। बुझाला त बस काम बुझाला। 

एह लगनशीलता के ललसा मतलब के बखरा कहल जाए त कवनो अतिशयोक्ति ना होई। काहे कि एह बखरा में रचनन के श्रेणी बद्ध कइल गइल बा। संत साहित्य में तीन, पुरनकी धार में अट्ठाईस, नयकी धार में तेंतीस, कहानी में एगारह, संस्मरण में एक आ अनुवाद में एक रचना से सहेजाइल सँवराइल बा। धार त धार ह। जवन देखे निरेखे के चीझ ह। जौना के धार मैना में चिन्हल गइल बा । भक्ति के धार बा त शक्ति के भी धार बा। बियोग में आँसू के धार बा त जोग में संजोग के भी धार बा । बेटी के अंतर धार बा त बाप के भी अंतर धार बा। बसंत के बौछार के धार बा त तीसी सरसो के चोन्हाइल बेयार के धार बा। 

संत साहित्य में धरनीदास के सात कविता बाड़ीन सँ। पहिल कविता - अमृत नीक कहै सब कोई में - दरिया अमृत नाम अनंत, जाको पी पी अमर भये संत। अमरता के देने संकेत देत बिया। 

असहीं जवन भी कविता भा कहानी के मैना में लिहल गइल बा तवना के महत्व समझल गइल बा आ खासियत भी। आ जवन कमी नजर में आइल बा तवना पर संपादकीय में सवाल उठावल गइल बा, जवन वाजिब बा। हाल में बड़ विधा से कलमकार कट भाग रहल बा। अपना के छोट विधा के विषय लेके परकास में लेआवल चाहत बा। जबकि सय में दसे गो पाठक काहे ना होखस, ओह विधा पर कलम चले के चाहीं। पाठक नइखे त पाठक कइसे होई एह बात पर भी जाए के चाहीं। दमगर कृति होई त ओकर स्वागत जरूर पाठक करिहें, एह में दू मत नइखे, गाँव में नाटक पहिले धड़ले से कवनो परब तेवहार पर होत रहे, अब ढेर कमी आइल बा, लेकिन जहाँ होखत बा तहाँ पहिलहीं अइसन ललाइत दरसक आ जाताड़न, कमी के दूर करे के परी कि जवना नयका पीढ़ी अश्लील के देने रोखी कर रहल बिया, तवना के रोखी ऐने करे के परी, एगो बात ले लिहीं, जवन नारी घूँघट में होली उनुका के देखे खाती के ना ललाइत रहेला। जब किताब के मथेला दमगर होई आ लेखन में रोचकता त ओकरा के पाठक जरूर स्वागत करी। 

हाल में उपन्यास, नाटक, समीक्षा आ आलोचना पर बहुत कम काम हो रहल बा, आ भोजपुरी पत्रिका के संपादक के पास ओह तरीका के विधा भी नइखे पहुँच रहल, जवन कि लिखाए आ जाए के चाहीं। आ संपादक के भी ओइसन लेख आलेख आवे त जगह देबे के चाहीं, एह वजह से कि हर लिखनिहार के पास प्रकाशित करे के समरथ नइखे आ लिखनिहार लिखतो बा त दीमक ले चाट घालत बाड़न सँ। हुलस के चलल लेखनी आगे बढ़ावल भोजपुरी साहित्य के हित होई। 
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लेखक परिचयः
C/o डॉ नंद किशोर तिवारी
निराला साहित्य मंदिर बिजली शहीद
सासाराम जिला रोहतास ( सासाराम )
बिहार - 221115
मो 0 न 0 7488674912




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