रामजी - विद्या शंकर विद्यार्थी

रामजी आउर केहू ना हमरा गाँव में के एगो आदमी के नाम ह। आ ई रामजी केहू के जरताह आंँखीं से कबो ना ताकस। खेतिहर आदमी हवन।बधार के चारों सिवान में खेत हइन। इनिकर खेत में ट्रैक्टर घुमल हो जाला त अन्हको खेत में घुमा जोत देलन।खालि कहला के देरी होला। केहू के हाथ सकेती रहलो पर काम चला देलन। ई बात लेके कि दस मन हो जाई समय से रोपला पर त गांवे के आदमी खुश रहिहें। हमार का लागत बा एह में। फायदा में फायदा बा, आदमी के खुश रहला के फायदा।

रामजी के घर गाँव के बौली पर बा। ई बात एह लेके कहे के परता कि केहू भरम में मत रहे कि कवन रामजी के बात होत बा।‌आउरो गांँव में रामजी होइहें, एह में दु राय नइखे बाकि ओह गाँव में बौली ना होई। से लेके पका हो गइल कि हमरे गाँव के रामजी के बात होता। आउर गाँव के रामजी हमरा गाँव के रामजी के छाती तान के बरोबरी ना नू करिहें कि आन के सहायता में दिल खोल के मदत कर दिहें। मूस बिलाई के लोग खेला कर दिही, मूसवा केनिओ जाई त बिलइया अइसन बचवा के चबा जाई लोग। ई त बा आज काल्ह के संघतियावँ। दाव के इयारी बा दाव से।

एक साल के बात ह कि रामजी के अइन खेती के मौका पर तबीयत खराब हो गइल। गाँव के रूहेला लोग मसखरी करे आ टोन कसे लागल कि मल्लाहवा रे केतना पानी, त मल्लाहवा कहलस पार करी सेही जानी। ना एहीजा मल्लाहवा रहे ना पानी, रहे त एहीजा गाँव के तपाकी लोग। ना जेकरा राह फूंके आवे ना चले। आन के नीमन सुझाव का दिही।खाए रोटी आ लगावे के नून सबका ना होला। नून लगावे के जगह घाव पर दरे लागेला। रामजी दरस ना, नून में मिले सिवा।

रामजी से बिसुन कहलन -"चाचा,‌ चिंता जन करिह खेती कइसे होई, हम ठाड़ होके कराइब।" सेही भइल। रूहेला लोग ताकत रह गइलन आ खेती हो गइल।

बिशुन काहे ना अंटिहें रामजी के।एहू में सुबहान बा। बिशुन के बेटी के शादी रहे। हित तय रकम से आगे मांगे लागल। ई त पत्थल त हाथ दबइले समान रहे। हर चीज के सट्टा बेयाना दिआ गइल रहे, बिशुन आगे-पीछे ताकस त केहू मददगार ना रहे। रात में भगजोगनी लउकन स आ दिन में हँसे ओला लोग। रामजी के एह बात के जानकारी लागल त बिशुन के दुआर पर जुट गइलन। बिशुन उदास रहन। उनुका के उदास देख के रामजी कहलन - "काहे बिशुन, उदास काहे बाड़ऽ होॽ " बिशुन गमछी के कोर से डबडबाइल आँख पोंछत कहलन -" का कहीं रामजी भइया, हित हमरा के भंवरजाल में डाल देले बा, हम एह चकोह से कइसे उबरीं इहे नइखे बुझात हमरा।"

"जब तोहरा नइखे बुझात तो हमरा बुझात बा न, तूँ हमार बिलात खेती सम्हार देलऽ, इहो त इज्जत के खेती ह। तोहार इज्जत आ हमार इज्जत बांटल नइखे। भंवरजाल के चिंता छोड़ऽ।" रामजी अपना किशुन चिंते खा गइलन। दुआरे बारात लागल कि गाँव के लोग देखते रह गइल।

ई रामजी बनवास ना गइलन। सेबरी के बइर ना खइलन आ केवट से गोड़ ना धोअइलन। बाकि गाँव में रह के सबकर सरधा के स्वीकार करत रहेलन आ किशुन अइसन भंवरजाल में फँसल आदमी के बेटी के बिआह जन रूके मौका के मोहड़ा पर ठाड़ रहेलन।‌ एतना कइला के बाद ई हम ना राखेलन कि हम बहुत कुछ कर दिहलीं। एह से गाँव-ज्वार के समझदार लोग कहेला कि मिलनसार हिरदय के आदमी के नाम ह रामजी।
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लेखक परिचयः
C/o डॉ नंद किशोर तिवारी
निराला साहित्य मंदिर बिजली शहीद
सासाराम जिला रोहतास ( सासाराम )
बिहार - 221115
मो 0 न 0 7488674912




मैना: वर्ष - 10 अंक - 121 (जनवरी 2024)

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