विद्या शंकर विद्यार्थी जी के तीन गो कविता

कुकुरन के बारात

कुकुरन के बारात लेअइलऽ
समधी तूँ सधुअइलऽ
जूता पर नजर इहनिन के
घाउंज तूँ करवइलऽ।
कमे कुकुर बाड़न सन ई
जवन टांग ना टारसन
जगहा के बात कहाँ बाटे
जेने मन जल ढारसन।
आन के पतल बरी प टूटनस
आपन जमा करसन
बुनिया छोड़ के पेटपचवन के
नून दही पर परसन।
कवनो बस के सीट नोचे त
कवनो सिक्रेट पीअता
का अदब के बात करीं हम
फटले जीन्स में जीअता।
पतल भर भात घट जाई त
बेटिहा के इज्जत जाई
इहे सोच में परल बानीं हम
इहनिन के कब बुझाई।
इहनिन के कवन दिना अब
असली बात बुझाई
चिरकुट के कहत बाड़न सन
हउए शोभा के टाई।
कुकुरन के बारात लेआवल
बन होखल जरूरी बा
इज्जत ना बन्हिहनस ई
सोचल ई अब जरूरी बा।
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जेकरा से आस रहे

जेकरा से आस रहे बाप के करतूत ना ढोई
उहो अब तऽ ओही राह पर दर‌ के चलता
जमाना के आँख में धूर झोंकला प लिख लेला
तसल्ली एतने बा कि जमाना सांच उगीलता
हिसाब अनहकी के सब इहंँवे‌ हो जाई सुनलीं
समय अबहीं भुलावा देता आ खइनी मलता
हम भरोसा कइले बानीं कि समय साथ दिही
लउकता सदेह धूप तम के फार के निकलता।
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साँच अइसन नचा गइल बाटे

राह जिनिगी सजा गइल बाटे
कांट केहू बिछा गइल बाटे
थाह पतझड़ लगा गइल बाटे
हाथ केहू मिला गइल बाटे
साध के गांँव में भला होला
डाह ओने बिगा गइल बाटे
सोच अबहूँ इहाँ उहे बाटे
लोग मिलके जुझा गइल बाटे
आग भीतर जरा गइल विद्या
साँच अइसन नचा गइल बाटे
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लेखक परिचयः
C/o डॉ नंद किशोर तिवारी
निराला साहित्य मंदिर बिजली शहीद
सासाराम जिला रोहतास ( सासाराम )
बिहार - 221115
मो 0 न 0 7488674912




मैना: वर्ष - 11 अंक - 122 (फरवरी-मई 2024)

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