कहनिया दुर्गा माई के - डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

कहनिया दुर्गा माई के

(भोजपुरी प्रबंध काव्य) 

श्रीदुर्गा सप्तशती की कथा 

डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल 

अभिनव पुस्तकालय 
पटना 
--------------------- 
मधु पीयत माई हँसली 
कहली सुन-सुन अज्ञानी रे!

खूब गरज ले तब तक 
जब तक हम मधु पीयत बानी रे! 
--------------------- 
पद सूची 
(प्रसंग क्रम से) 
मधु कैटभ वध - (पद सं. 1 से 3 तक) 
देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध - (पद सं. 4 से 9 तक) 
सेनापतियों सहित महिषासुर का वध - (पद सं. 10 से 14 तक) 
इंद्र आदि देवताओं के द्वारा देवी की स्तुति - (पद सं. 15 से 16 तक) 
शुंभ और निशुंभ का देवी अंबिका के पास दूत भेजना - (पद सं. 17 से 19 तक) 
धूम्रलोचन और चंड-मुंड वध - (पद सं. 20 से 21 तक) 
रक्तबीज वध - (पद सं. 21 से 22 तक) 
निशुंभ और शुंभ वध - (पद सं. 23 से 24 तक) 
दुर्गम वध, दुर्गा नाम और देवी गाथा के श्रवण का माहात्म्य - (पद सं. 25 से 28 तक ।) 
--------------------- 
आभार 
असल में ‘कहनिया दुर्गा माई के’ रचना एगो कैसेट कंपनी का आदेश पर गावे खातिर भइल रहे। पहिले हम एकराके जवना छंद में लिखले रहीं, ऊ एगो हिंदी गायक का विशेष धुन पर आधारित रहे। ओह घरी हम चेन्नई गइल रहीं। कुछ दिन तक रहीं, ढेर कवनो काम ना रहे। लिखत खा बुझाइल कि दुर्गा सप्तशती के हिंदिओ अनुवाद संस्कृत से कम नइखे। तब हमार रुचि अउर बढ़ि गइल, काहेंकि हमरा पढ़ल आ निपढ़- हर तबका खातिर लिखेके रहे। आलस्य कहीं भा अन्यमनस्कता, हम ओह कंपनी से रिलीज करवावे में रुचि ना लिहलीं आ ई धइले के धइल रहि गइल। एकाध बरिस गुजरला का बाद हमार श्रीमती जी (सीमा मिश्र) के उलाहना का स्वर में सलाह रहे कि लोक खातिर अतना महत्त्वपूर्ण रचना धइले काहेंके बानी। एकराके लोक धुन में फेरु से तेयार करीं आ लगले स्वरो दे दिहीं। अब समुझीं कि हम शुरू हो गइलीं। नगेंद्र भइया (नगेंद्र चौधरी) का सहयोग से एकर रिकॉर्डिंगो हो गइल आ लगले लगल दिल्ली का एगो लोकप्रिय कंपनी से एकर ऑडियो रिलीज हो गइल। 

गैर भोजपुरीभाषी लोगन का बीच भी ई लोकप्रिय भइल। चूँकि ई कोशिश कइल गइल रहे कि संक्षेप में दुर्गा सप्तशती के अविकल सामग्री प्रस्तुत कइल जाव,ताकि ओकरा महातमो के लाभ लोग उठा सकसु। एहसे एकराके मुद्रितो रूप में ले आइल जरूरी लागल। ओही के प्रतिफल बा एकर प्रकाशन। 

एह प्रबंध काव्य का लेखन, गायन आ प्रकाशन में जेकर-जेकर (कवनो प्रकार के) भूमिका बा, ओकरा प्रति हम सादर आभार व्यक्त करतानी। जय दुर्गा माई। जय काली माई। 


विनयावनत 
रामरक्षा मिश्र विमल 
कोलकाता 
09 दिसंबर, 2018 
ई मेल : rmishravimal@gmail.com 
मोबाइल : 9831649817 
--------------------- 
॥जय दुर्गा माई। जय काली माई॥ 

पहिले दरबार में हम मथवा नवाईंले 
दुर्गा माई के। 
तब कहऽनिया सुनाईंले, दुर्गा माई के। 

भक्तन के चिंता माई दूरे ले भगाईंले, 
अइसन माई के। 
हम कहऽनिया सुनाईंले, दुर्गा माई के। 

दुर्गा माई के जय-जय, काली माई के जय-जय। 
--------------------- 

(1) 

एक बेर के बात बिष्णूजी सूतल रहलीं घर पर 
तबे कान के मइल से उनका पैदा भइले दू निशिचर 
मधु कैटभ नामक दूनो असुरन के शक्ति अपार हो 
ब्रह्माजी के बध खातिर हो गइलन ऊ तइयार हो 
ब्रह्माजी प्रार्थना करे लगलीं जोगनिद्रा माई के 
जल्दी उठीं जगाईं माई बिष्णूजी के जाई के 
जग के रचना पालन नाश करींले रउँवे माई हो 
सभसे सुंदर शक्तिमान ब्रह्मांड में रउँवे माई हो 
अइसे ब्रह्माजी देवी के गुणगान सुनाईंले, 
दुर्गा माई के। 
हम कहऽनिया सुनाईंले, दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(2) 

अस्तुति सुनिके आपन माहामाया जी तब खुश भइलीं 
भगवन बिष्णूजी का तन से झट से बाहर चलि अइलीं 
तब भगवान जागि गइलीं आ जुद्ध भइल आरंभ हो 
पाँच हजार बरिस तक लड़लीं तुरलीं उनुकर दंभ हो 
मधु कैटभ दूनो माया का चक्कर में अइसे परले 
देखि बीरता खुश होके प्रभु से वर माङे के कहले 
भगवन वर मँगलीं कि हमरे हाथन तू लो’ मारल जा 
अतने वर दे द लो’ हमरा नइखे अउरी कुछ इच्छा 
धऽरमसंकट में भगवन उहनी के फँसाईंले, 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(3) 

मधु कइटभ देखले कि, चारो ओरिए पानी पानी बा 
अइसन कवनो जगह रहे ना, जहँवा नाहीं पानी बा 
कहले हमनी के मारीं ओहिजे जहँवा पानी ना हो
जहँवा पृथ्वी जल में ना डूबल हो पूरा सूखल हो 
तब अपना जंघा पर प्रभुजी उहनी के मस्तक रखलीं 
अउर चक्र से कटलीं तुरते उहनी के मुकती दिहलीं 
देवी माहामाया का कारन ई आफति खतम भइल 
ब्रह्माजी का बिनती पर देवी मइया के कृपा भइल 
माई के महिमा अउरी सूनीं हम बताईंले 
दुर्गा माई के । 
--------------------- 

(4) 

पूर्व काल में देवासुर संग्राम चलल सइ साल रहे 
असुरन के मालिक महिषासुर कइले बहुत कमाल रहे 
देवन के सेना के जितलसि अउरी अपने इंद्र बनल 
देवलोक में देवता लो’ पर ओकरे राज चले लागल 
हारल देवता दउरल गइले बिष्णू आ शिवजी के पास 
नाथ बचाईं मुश्किल बाटे अब त तनिको लीहल साँस 
महिषासुर हमनी के स्वर्ग निकाला कइ देले बाटे 
पृथ्वी पर घूमे खातिर मजबूर बना देले बाटे 
रो रोके देवता आपन दुखड़ा सुनाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(5) 

हे भगवन महिषासुर बध के अब त कवनो करीं उपाय 
रउँए सभका सरन में बानी जा हमनी देवता असहाय 
सुनिके बिष्णू आ शिवजी के क्रोधानल जागल तुरते 
बिष्णूजी का मुँह से बड़हन एक तेज निकलल तुरते 
असहीं शिवजी ब्रह्माजी आ सभ देवन से भी निकलल 
एके जगहा सभके तेज मिलल आ तेजोपुंज बनल 
तेजपुंज अइसे लागे जइसे कवनो परबत बरियार 
बदलल नारी रूप में तुरते सभ अंगन में साज-सिङार 
आगे सूनीं कि देवी कइसन भेष बनाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(6) 

सभ देवन का तेजपुंज से देवी के अवतार भइल
देवता देखि बहुत अगरइले हियरा खुशी अपार भइल
बहुत सतवलस महिषासुर अब ओकर होई नाश हो 
देवी का दरसन से उनका मन में बढ़ल हुलास हो 
शिवजी शूल चक्र बिष्णूजी देवी माँ के दे दिहलीं 
हर देवता असहीं अपना बल के कुछ अंश उन्हें दिहलीं 
बार-बार गर्जना करे लगली अब देवी माई हो 
गूँजे लागल आसमान में जय-जय देवी माई हो 
अपना गरजन से माई निशिचर के डेरवाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(7) 

देवी का दरसन से पहिले बहुत चकाइल महिषासुर 
तलहीं जुद्ध शुरू कइ दिहलस ओकर सेनापति चिक्षुर 
साठ हजार रथी का साथे दैत्य उदग्र भिड़ल आके 
एक करोड़ रथी के लेके महाहनू धमकल आके 
सङ में आपन आपन भारी बलशाली सेना लिहले 
असिलोमा बास्कल बिडाल सभ मिलिके साथे चलि अइले 
महिषासुर आपन बिशाल सेना लेके आइल छ्न में 
बहुत बीरता से देवी माई से लड़त रहे रन में 
हाँफल थाकल दुसमन पर माई मुसकाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(8) 

परमेश्वरी भगवती जब-जब छोड़ीं रण में साँस हो 
लाखों गण परगट होखे लगले मानीं बिसवास हो
देवी का सक्ती से उपजल गण बहुते बलवान हो 
असुरन के सेना खातिर बनि गइले ऊ तूफान हो 
देवी के बाहन सिंहो अब हो गइले नाराज हो 
छोड़ेके नइखे एको निशिचर के जीयत आज हो 
असुरन के संहार करे लगली अब देवी माई हो 
रणचंडी बनिके हुंकार करे लगली अब माई हो 
खूने के नदिया रणभूमी में बहाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(9) 

कतने मुरुछा गइले सुनिके घंटा के टनकार हो 
कतने दू टूकी भइले उठते माँ के तलवार हो 
कतनन के रस्सी में बन्हली घिसियावे लगली माई 
तीर गदा से निशिचर दल के नष्ट करे लगली माई 
कटि-कटि बाँहि गिरे लागलि मस्तक उछ्ड़े लागल रन में 
तबहूँ निशिचर सेना डर के पीछे ना भागल रन में 
बाकिर तनिके में जगदंबा हरली सभकर प्रान हो 
भइले खुश सभ देव कि आइल जइसे जान में जान हो 
खूसी का मारे देवता नाचींले आ गाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(10) 

नष्ट होत सेना के सेनापति चिक्षुर जसहीं देखलसि 
जगदंबा से जुद्ध करे खातिर बढ़िके आगे अइलसि 
देवी पर बाणन के त अइसे ऊ लागल बरिसावे 
जइसे परबत पर करिया बादर जल जमिके बरिसावे 
देवी बाणन के कटली आ कटली धनुष ध्वजा ओकर 
तब तलवार ढाल लेके चिक्षुर दउरल देवी माँ पर 
बहुत बीरता से लड़लो पर चिक्षुर नाहीं बाँचल हो 
माँ अइसन प्रहार कइली कि खंड खंड ऊ होखल हो 
असहीं निशिचर वीरन के माँ जमलोक पठाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(11) 

देवता लो’ के खूब सतावेवाला निशिचर खिसियाइल 
चामर नामक ऊ निशिचर अब हाथी पर चढ़िके आइल 
कइलस सक्ती के प्रहार देवी पर अवते ऊ चामर 
जगदंबा निष्क्रिय कइ दिहली छनही में सक्ती ओकर 
तब ले शूल चलवलस चामर, देवी माँ कटली ऊहो 
अतने में ओकरा हाथी पर चढ़ि बइठल पिनिकल सिंहो 
चामर अउरी सिंह दुनो लड़ते लड़ते नीचे अइले 
अइसन सिंह चलवले पंजा उनकर सिर अलगा भइले 
असहीं बाष्कल अंधक सभके माँ मार गिराईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(12) 

सर्वनाश होखत अपना सेना के महिषासुर देखलसि 
भैंसा बनके रन में सभ लोगन के तंग करे लगलसि 
केहूँ के थूथुन से मारे केहूँ के अपना खुर से 
गरज गरज के डेरवावे रण में अपना कल से बल से 
देखली जब त माँ खिसियइली, ऊहो खिसियाइल खूबे 
गरज गरज के धरती के खुर से खोदे लागल खूबे 
उठा उठा के परबत लागल फेंके आ गरजे भाई 
क्रोध में पागल महिषा लागल बार बार गरजे भाई 
अब देखीं माई कइसे ओ पर हाथ उठाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(13) 

अइसन पोंछि पटकलसि महिषासुर धरती हीले लगली 
अब त चारो ओरि समुंदर में धरती डूबे लगली 
सींघि लगाके बादर के ऊ टुकड़ा टुकड़ा कइ दिहलसि 
परबत का बरखा से सभ लोगन के आफति में डललसि 
रस्सी में बन्हली मइया, जसहीं बढ़िके आगे आइल 
भैंसा से ऊ सिंह बनल झट से चहलस फरका जाइल 
जगदंबा तलवार उठवली जसहीं मारे के ओहके 
पुरुष रूप में बदलि गइल तलवार हाथ में ऊ लेके 
जगदंबा तब ओकरा पर बहुते तीर चलाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(14) 

तब महिषा हाथी बनिके सिंहो पर सूँढ़ घुमा दिहलस 
माई सुँढ़वो के कटली तब फिर भइँसा बनिके अइलस 
मधु पीयत माई हँसली कहली सुन सुन अज्ञानी रे 
खूब गरज ले तब तक जब तक हम मधु पीयत बानी रे 
अतना कहिके माँ कुदली आ दुष्टे पर चढ़ि गइली ऊ 
शूल उठाके ओकरा गरदन पर प्रहार तब कइली ऊ 
जसहीं रूप बदलिके ऊ महिषा मुँह से आधा निकलल 
माँ तलवार चलवली छप से ओकर मस्तक भूँइ गिरल 
महिषासुर बध पर देवता फूले ना समाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(15) 

महिषासुर बध से खुश देवता माई का पासे गइले 
माई के महिमा गावत खूबे ऊ लो’ अस्तुति कइले 
सुर नर सभके असुरन से मुकती दिहलीं माई रउँआ 
सभका मन में जीए के इच्छा भरलीं माई रउँआ 
रउरा के जे भक्तिभाव से पूजेला आ बिनवेला 
ओकर दुर्दिन भागेला आ सभ आशा पूरा होला 
रउरे से होखे जग के रचना पालन संहार जी 
हमनी सभ के कइ दिहलीं मइया रउँवे उद्धार जी 
अस्तुति सुनिके आपन जगदंबा मुसकाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(16) 

माई कहली अउर कामना होखे जो त माङऽ लोग 
अतना सुनके उछड़े लगलन खुश हो होके देवता लोग 
कहले महिषासुर का बध से पूरा भइल सभे इच्छा 
दीहल चाहीं बर त एगो बाकी अउरी बा इच्छा 
जब हमनीं का याद करीं जा रउँआ दरसन दिहल करीं 
हमनी पर के कवनो संकट अवते रउँआ दूर करीं 
जगदंबा बर दिहलीं आ हो गइलीं तुरते अंतर्धान 
हम अग्यानी जगदंबा के महिमा कइसे करीं बखान 
आगिल लड़ाई से कहऽनिया बढ़ाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(17) 

शुंभ निशुंभ महादैत्यन से एक बार देवता भिड़ले 
कई साल पहिले जब जुद्ध भइल त बुरी तरह हरले 
देवराज के गद्दी अउरी जग्य के सारा भाग हो 
शुंभ निशुंभ का हाथे लागल देवता चलले भाग हो 
दुखी देवगन का इयाद आइल देवी जगदंबा के 
गइले उनका शरन में मिलके अस्तुति कइले अंबा के 
पारबती जी तबे नहाए गंगा में आइल रहलीं 
केकर अस्तुति करऽतानी देवता लोगन से पुछ्लीं 
देवी का तन से परगट होके सिवा बताईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(18) 

कहलीं सिवा कि शुंभ निशुंभ से हारल बाड़े ई देवता 
हमरे अस्तुति कऽरत बाड़न एहिजा जुटिके सभ देवता 
तब तक शुंभ निशुंभ के भेजल चंड मुंड ओहिजा अइले 
परम मनोहर रूप अंबिका जी के देखत रहि गइले 
देवी के सुंदरता सुनिके शुंभ पठवलसि दूत उहाँ 
बनि जा हमार रानी अइसन दुलहा तोहरा मिली कहाँ 
हमरा से बलवान शक्तिशाली केहू जग में नइखे 
कवन चीज अइसन दुनिया में जे हमरा पासे नइखे 
सुनिके संदेश देवी माई मुसकाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(19) 

माँ कहली कहि दीहऽ जाके अपना मालिक से बबुआ 
एक प्रतिग्या कइले बानी पूरल ना कब से बबुआ 
जे हमरा से जुद्ध करी आ हमके दिहीं हराइ हो 
ओकरे हम पत्नी बनि जाइबि नइखे अउर उपाइ हो 
अतना सुनते दैत्यराज तब बहुत जोर से खिसियाइल 
भेजलसि सेनापती धूम्रलोचन के तम तम गरमाइल 
झोंटा धइके घिसियावत ले आवऽ ओकरा के तुरते 
जे बचाव में आवे ओकरा, मरिहऽ ओकरा के तुरते 
अब सूनीं माई कइसन उनुकर हाल बनाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(20) 

धूम्र दउरले जगदंबा पर वार करे खातिर जसहीं 
माँ कइके हुंकार भस्म कइ दिहली उनुका के तसहीं 
माई के वाहन सिंहो उनुका सेना पर टूट परल 
नष्ट-भ्रष्ट कइ दिहलस केहू निशिचर ना उनसे छूटल 
चंड मुंड अइले अब करे लड़ाई देवी माई से 
क्रोध में करिया चेहरा जीभ निकलले अइसन माई से 
काटे खाए लगली अउरी खून पिए लगली मइया 
चंड मुंड के मूड़ी छ्प से काटि गिरा दिहली भुइँया 
एही से काली माई चामुंडा कहलाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(21) 

क्रोध में शुंभ निशुंभ पठवले सेना बहुत विशाल अब 
जगदंबा काली सभके कइली विनष्ट तत्काल तब 
रक्तबीज तब आगे आइल जेकर खून गिरे जसहीं 
धरती पर तब ओकरे नीयन बीर नया उपजे ओसहीं 
जहँवा जहँवा खून चुवे सैकड़ों बीर पैदा होखसु 
रक्तबीज नीयन बलशाली सभे बीर बड़का होखसु 
रक्तबीज का लीला से बहुते घबड़इले देवता लोग 
रक्तबीज खतमे ना होई खूब डेरइले देवता लोग 
सूनीं कइसे एकरो के माई पार लगाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(22) 

देवता लो’ के देखि चंडिका देवी काली से कहली 
मुँह फइलावऽ अउर तबे जाके एकरा पर विजय मिली 
जतना वीर नया पैदा होखसु सभके खाए लगली 
रक्तबीज पर अतने में चंडिका शूल कसिके फेंकली 
गिरल खून बहुते ओकर बाकिर चंडिका पियत गइली 
जतना चाहीं ओतना अपना मुह के फइलावत गइली 
मुँह में जतना दैत्य जनमले सभके मइया खा गइली 
रक्तबीज के बाँचल-खूचल खूनो गट गट पी गइली 
बध कइके ओकर देवी सभकर मन हरषाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(23) 

रक्तबीज का मरते शुंभ निशुंभ बहुत क्रोधित भइले 
तुरते देवी ओर बचल खूचल सेना लेके गइले 
मचल घोर संग्राम भयंकर अस्त्र-शस्त्र छूटे लागल 
बाण बज्र आ शक्ति गदा हथियार सभे छूटे लागल 
एक-एक करके देवी सभ अस्त्रन-शस्त्रन के कटली 
शूल चलाके ओकरा छाती पर प्रहार जमके कइली 
‘ठाढ़ रहऽ’ कहके छाती से बीर तबे एगो निकलल 
देवी छ्प से कटली ओकर मूड़ी धरती पर बिखरल 
अइसे निशुंभो के माई जमलोक पठाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(24) 

प्रिय भाई निशुंभ का बध पर बहुत अनर्गल बकले शुंभ 
दुनिया भर के नारी का बल पर तहरा बाटे ई दंभ 
तब माई अपना बिभूतियन के समेटि लिहली तुरते 
कहली दुष्ट ई सभ हमरे हऽ अब त बानी हम एके 
छिड़ल भयंकर जुद्ध देवता लोगो मन में घबड़इले 
पृथ्वी से आकाश तलक घनघोर जुद्ध अइसन भइले 
बहुत देर का बाद पटकली शुंभ के धरती पर मइया 
फिर त्रिशूल से मरली तब जाके दुश्मन गीरल भुइँया 
अइसे माई दुर्गा धरती के बोझ हटाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(25) 

एक बार दुर्गम नामक बलशाली दैत्य भइल जग में 
ब्रह्माजी से वर पाके अउरी मजबूत भइल जग में 
छू मंतर कइ दिहलस चारो वेद पता ना कहँवा ऊ 
बढ़ल अधर्म जगत में अब त सभके दुर्दिन भइल शुरू 
ना केहू अब दान करे ना जग्य कहीं होखत लउके 
अत्याचार बढ़ल हर जगहा पापकर्म होखत लउके 
लगातार सइ साल भइल ना तनिको बरखा धरती पर 
कुँआ नदी सागर सूखल दुख में डूबल सभ नारी नर 
तीनो लोकन का दुख से देवता लो’ घबड़ाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(26) 

तब जोगमाया मइया का चरनन में देवता लो’ गइले 
रो रोके दुर्गम से सभका रक्षा के विनती कइले 
घोर सुखार परल बा जल आ अन्न बिना सभ लोग मरे 
जीए के कवनो असरा ना, केहू कइसे धीर धरे 
जइसे हमें उबरलीं महिषासुर अस भारी दुष्टन से 
ओसहीं माई हमें उबारीं अब अततायी दुर्गम से 
दयामयी माँ का अँखियन से बहल लोर के धार तबे 
धरती के आँतर भींजल आ तृप्त भइल संसार तबे 
तीनो लोकन के संकट पल में माँ उधियाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(27) 

माँ जगदंबा का चरनन में फिर से देवता लो’ गइले 
दुर्गम के मारे खातिर माँ से रोके विनती कइले 
दुर्गम के जब पता चलल तब देवलोक पहुँचल तुरते 
नष्ट करे खातिर बड़हन सेना लेके पहुँचल तुरते 
तब माँ आगे बढ़ली अउरी दुर्गम के रहता रोकली 
जगदंबा का तन से दसों महाविद्या बाहर अइली 
क्रोध में माई सेना का सङहीं दुर्गम के भी मरली 
दुर्गम बध का कारन माई जग में ‘दुर्गा’ कहलइली 
दुर्गतिनाशिनि भइलो से माँ ‘दुर्गा’ कहलाईंले 
दुर्गा माई के। 
--------------------- 

(28) 

सभ देवता मिलके माँ दुर्गा के जयकार करे लगले 
डूबि डूबि के विमल भगति में माई के बिनवे लगले 
माँ कहली जे जन हमार रोजे-रोजे अस्तुति करिहें 
उनुका कवनो काम में कवनो बाधा ना कबहूँ अइहें 
मधु कइटभ महिषासुर अउरी शुंभ निशुंभन के संहार 
ई प्रसंग जे सुनी ना छूई, ओके कवनो पाप विकार 
प्रेमी से बिछोह ना होई, भय केहूँ से होई ना 
मंगल धुन गूँजी घर में उनुका कवनो दुख होई ना 
माफी दीहबि माँ जो कुछ गलती सुनाईंले। 
छेमा करबि माँ जो कुछ गलती सुनाईंले 
दुर्गा माई के। 
हम कहऽनिया सुनाईंले, दुर्गा माई के। 
दुर्गा माई के जय-जय। काली माई के जय-जय॥
----------------------------------
लेखक परिचय:-
जन्म: बड़कागाँव, सबल पट्टी, थाना- सिमरी
बक्सर-802118, बिहार
जनम दिन: 28 फरवरी, 1962
पिता: आचार्य पं. काशीनाथ मिश्र
संप्रति: केंद्र सरकार का एगो स्वायत्तशासी संस्थान में।
संपादन: संसृति
रचना: ‘कौन सा उपहार दूँ प्रिय’ अउरी ‘फगुआ के पहरा’
ई-मेल: rmishravimal@gmail.com

मैना: वर्ष - 7 अंक - 117 (जनवरी - मार्च 2020)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.