मैना: वर्ष - 2 अंक - 35

भोजपुरी औरी भिखारी ठाकूर



10 जुलाई 1971 के दिने भिखारी ठाकूर जी आपन देंह छोड़लन औरी ई होखहीं के रहे। एमे केवनो नाया बात ना रहे। सभका आपन देंह छोड़हीं के परी समय से भा कुसमय। लेकिन ओकरा ले बेसी महता कऽ बात ई बा कि ओ देंह कऽ अदिमी सगरी जिनगी केङने बीतवलस औरी का कइलस। भिखारी ठाकूर आपन सगरी जिनगी भोजपुरी साहित्य के दे दिहलन। कुछ लोग कहे ला कि भिखारी ठाकूर अपनी पेट खाती भोजपुरी से जिनगी भर सटल रहलन काँहे कि नौटंकी खाती भोजपुरी के छोड़ि के दोसर भाखा कऽ केवनो काम ना रहे; पेट ना चलि पाइत। हो सकेला इहे कारन होखे भा केवनो दोसर ओकर ढेर महता नइखे। महता बा तऽ उनकर रचल साहित्य के औरी उनकरी साहित्य कऽ महता केहू से कहे कऽ जरुरत नइखे।
------------------------------------------------------------------------------
भीखा साहब (जीवन चरित) - राजीव उपाध्याय

भोजपुरी साहित्य के विकास के क्रम में एक से बढि के एक संतन के जोगदान बा। ओही परम्परा आगे बढावले बानी भीखा साहब जी। इंहा कऽ भोजपुरी कऽ कबी रहनी औरी बावरी पंथ कऽ भुरकुड़ा, गाजीपुर शाखा कऽ नौवाँ संत रहलीं जिंहा के गुरू के नाँव गुलाल साहब रहल। बावरी पंथ निरगुन साधना कऽ एगो पाँच सौ साल पुरान परम्परा हऽ जेवना के अनुयायी पूरबी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर और बलिया जिला में पावल जालें। इँहा का एगो बरियार संत रहनी जे देखावे-सुनावे फेरा में रहे वाला रहनी। उँहा के ए बात माने वाला रहनी कि जे भगवान के भजन ना करेला ऊ कालरुप होला
-----------------------------------------------------------------------------
फिरंगिया - मनोरंजन प्रसाद सिंह

सुन्दर सुघर भूमि भारत के रहे रामा
आज इहे भइल मसान रे फिरंगिया।
अन्न धन जल बल बुद्धि सब नास भइल
कौनों के ना रहल निसान रे फिरंगिया॥

जहॅवाँ थोड़े ही दिन पहिले ही होत रहे,
लाखों मन गल्ला और धान रे फिरंगिया।
उहें आज हाय रामा मथवा पर हाथ धरि
बिलखि के रोवेला किसान रे फिरंगिया॥
-----------------------------------------------------------------------------
फूहड़ता के लेके खाली भोजपुरी के चर्चा काहे - अभय कृष्ण त्रिपाठी "विष्णु"
कबो इ सवाल हमरा मन में बारी बारी घुमे बाकि काल पुरान मित्र डॉक्टर ओमप्रकाश जी के सन्देश से फिर से ताजा हो गईल। सवाल जेतना आसान बा जवाब ओतना आसान नइखे काहे से कारन खोजे में सबसे ज्यादा भोजपुरिये के करेजा छलनी होई। कुछ खास लिखला से पहिले हम ई कहे चाहेब कि फूहड़ता के मतलब मनोरंजन ना होला, फूहड़ता के मतलब गारी से भी ना होला अउरी सबसे बड़ बात कोई भी विषय, शब्द या वाक्य फूहड़ ना होला, फूहड़ होला ओकरा के प्रस्तुति करे के ढंग। एकरा के एह तरह से समझल जा सकल जाला कि यदि गारी से फूहड़ता के जोड़ल जाइत त बियाह के समय गारी कबो ना गवाइत। लवंडा (लऊंडा) नाच के भोजपुरी संस्कृति में कबो जगह ना मिलित जेकरा के आज भी लगभग हर वर्ग द्वारा पसंद कईल जाला; ई अलगा बात बा कि आज मनोरंजन के एह विधा पर ग्रहण लग गईल बा। इहो सही बा कि हम मनोरंजन के एह विधा के कबो पसंद ना कइलीं लेकिन ई विधा काफी दिन तक भोजपुरी जगत के मनोरंजन के साधन रहे।
-----------------------------------------------------------------------------
झुलनियाँ उधार ना मिली - अशोक कुमार तिवारी

चतुर सोनरा करेला कार-बारऽ
झुलनियाँ उधार ना मिली।

पाँच रतन के ई बनली झुलनिया
हीरा-मोती मूँगा लागल सोना चनिया।
देखि के मनवा लोभाइल हमार।
चतुर सोनरा करेला कार-बारऽ॥

-----------------------------------------------------------------------------
 (7 जुलाई 2015)
<<< पिछिला                                                                                                                         अगिला >>>

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.