भोजपुरी औरी भिखारी ठाकूर
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भोजपुरी साहित्य खाती भिखारी ठाकूर जी कऽ जोगदान बहुत बरिआर बा औरी ए बात से केहू माना ना करी। बाकिर एगो बात एकदम साफ बा औरी ई बा कि भोजपुरी से भिखारी ठाकूर बाड़े ना कि भिखारी ठाकूर से भोजपुरी। कुछ लोगन कऽ नाया औरी पुरान काम औरी बतकही भिखारी ठाकूर के भोजपुरी से बड़ कऽ देबे वाली बे। ई केनिओ से ठीक नइखे। ई ना भोजपुरी खाती ठीक बा नाही भिखारी ठाकूर खाती।
आज हालत ई बा कि चारो ओर खाली भिखारी ठाकूर कऽ बतकही हो रहल बा भोजपुरी साहित्य में। जइसे भोजपुरी साहित्य में भिखारी ठाकूर के छोड़ि के दोसर केवनो साहित्यकार हइए नइखे। हर चीझ/अदिमी कऽ चौहदी होला औरी ओ चौहदी के भीतरे चीझ/अदिमी के दुनिया बटोराइल होला। लेकिन ओकरा बहरीयो एगो बहुत बड़ दुनिया होले। इहे बात भोजपुरियो के सङे बा। अपना पुरनिया के इज्जत कइल दोसर बात बा। बाकिर ओकर बन्हकी बन गइल दोसर। भिखारी ठाकूर के काल्हो इज्जत रहे औरी काल्हियो रही लेकिन आज भोजपुरी के भिखारी ठाकूर कऽ चौहदी से बहरी निकले पड़ी काँहे कि भिखारी ठाकूर कऽ चौहदी भिखारी ठाकूर खाती निमन हो सके ले भोजपुरी खाती ना। ई खाली भोजपुरी खाती नाहीं बाकिर भिखारी ठाकूर खातियो बढिया रही। जाने केतने संत साहित्यकर बाड़े जिनकर कहीं केवनो चर्चा ना होला भोजपुरी में। ओही तरे औरी साहित्यकार बाड़े उनकर केहू नाँव लेवा नइखे। चारु ओर खाली भिखारी ठाकूर के ही बात होखत रहेला। का ए तरे भोजपुरी साहित्य कऽ बिकास हो पाई? ना हो पाई। भिखारी ठाकूर से आगे बढ़े के परी। सङही भिखारी ठाकूर के एगो बिचार औरी बाद से जोड़े के जेवन रेवाज निकल गइल बा ऊ बहुत ठीक नइखे। एसे केहू के भला ना होई; नाही भोजपुरी के औरी नाही भिखारी ठाकूर के।
अंक - 35 (7 जुलाई 2015)
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