राम लखन मोरा गोदी के खेलवना से
के अब खइहें राम माखन मलइया से
महल अटारी तेजी सोइहें बेबिछवना से
सूर्य के किरीन लागी लाल कुम्भीलइहें से
मुनी हठ कइलें राम संगे लेई गइलें से
कवना बिरिछे तले रहीहें ललनवाँ से
नीको ना लागे सखी घरवा दुअरवा से
बाल रे पनवाँ से गोदीया खेलवनी से
निरखे महेन्द्र मोरा तरसे परानवाँ से
हमरा के तेजी कहाँ गइलें हो लाल।
के अब खइहें राम माखन मलइया से
के अब खैहें मिठइया हो लाल।
महल अटारी तेजी सोइहें बेबिछवना से
कवना बिरिछ तले सोइहें हो लाल।
सूर्य के किरीन लागी लाल कुम्भीलइहें से
बाघ सिंह देखि के डेरइहें हो लाल।
मुनी हठ कइलें राम संगे लेई गइलें से
तपसी कहा के दागा कइले हो लाल।
कवना बिरिछे तले रहीहें ललनवाँ से
राम लखन दूनू भइया हो लाल।
नीको ना लागे सखी घरवा दुअरवा से
नीको ना लागेला अँगनवाँ हो लाल।
बाल रे पनवाँ से गोदीया खेलवनी से
देखहूँ के भइलें सपनवाँ हो लाल।
निरखे महेन्द्र मोरा तरसे परानवाँ से
कबले दू होइहें मिलनवाँ हो लाल।
-------------------महेन्द्र मिश्र
-------------------महेन्द्र मिश्र
अंक - 50 (20 अक्टूबर 2015)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें