ई त बूढ़वा दुलहवा बड़ा मजेदार - महेन्द्र मिश्र

ई त बूढ़वा दुलहवा बड़ा मजेदार।
अटपट बोले मगर बाटे होसियार।।

पूरी कचवरी अउर हलुआ खिलाइबों,
चीनी के नीमकी अउर आम के अँचार।
ई त बूढ़वा दुलहवा बड़ा मजेदार।

डिमिक-डिमिक ई त डमरू बजावेलन,
सोहली गंगाजी उनका जटवा के हार।
ई त बूढ़वा दुलहवा बड़ा मजेदार।

ओढ़े के देइब हम सालवा दोसालावा,
खाए के देहब इनके सोनवाँ के थार।
ई त बूढ़वा दुलहवा बड़ा मजेदार।

निरखे महेन्द्र दुल्हा दुलहीन के सँगवा हो,
छूट गइलें हमरो अब जम के दुआर,
ई त बूढ़वा दुलहवा बड़ा मजेदार।
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महेंद्र मिश्र (महेंदर मिसिर)लेखक परिचय:-
नाम: महेंद्र मिश्र (महेंदर मिसिर)
जनम: 16 मार्च 1886
मरन: 26 अक्टूबर 1946
जनम स्थान: मिश्रवलिया, छपरा, बिहार
रचना: महेंद्र मंजरी, महेंद्र विनोद, महेंद्र चंद्रिका,
महेंद्र मंगल, अपूर्व रामायन अउरी गीत रामायन आदि

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