हम त जनलीं कि बबुआ इनाम दीहें।
हम नाहीं जनलीं कि जाने लीहें। बबुआ।
हम नाहीं जनलीं कि जाने लीहें। बबुआ।
केकई कारण हम अता दुख सहतानी
लाखन सिकाइतो खूब सहलीं रे बबुआ।
बिना अपराधे हम कुटनी कहावतानी
मारि-मारि हलुआ बनवलऽ हो बबुआऽ।
कहाँ ले इनाम मिली नाम वो निशान रही
उलिटा में जानवाँ गँववली हो बबुआ।
जानकी लखनराम बन के गमन कइले
दुनिया में अजसी कइहलीं ए बबुआ।
इज्जत के पहुँच गइनीं दूधवा के माछी भइली,
एको नाहीं सरधा पुजवल ऽ ए बबुआ।
केनियो के नाहीं भइनी दुनू तरफ से गइनी
सगरे से पापिनी कहइनी रे बबुआ।
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