हम त जनलीं कि बबुआ इनाम दीहें - महेंद्र मिश्र

हम त जनलीं कि बबुआ इनाम दीहें।
हम नाहीं जनलीं कि जाने लीहें। बबुआ।

केकई कारण हम अता दुख सहतानी
लाखन सिकाइतो खूब सहलीं रे बबुआ।

बिना अपराधे हम कुटनी कहावतानी
मारि-मारि हलुआ बनवलऽ हो बबुआऽ।

कहाँ ले इनाम मिली नाम वो निशान रही
उलिटा में जानवाँ गँववली हो बबुआ।

जानकी लखनराम बन के गमन कइले
दुनिया में अजसी कइहलीं ए बबुआ।

इज्जत के पहुँच गइनीं दूधवा के माछी भइली,
एको नाहीं सरधा पुजवल ऽ ए बबुआ।

केनियो के नाहीं भइनी दुनू तरफ से गइनी
सगरे से पापिनी कहइनी रे बबुआ।
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लेखक परिचय:-
नाम: महेंद्र मिश्र (महेंदर मिसिर)
जनम: 16 मार्च 1886
मरन: 26 अक्टूबर 1946
जनम स्थान: मिश्रवलिया, छपरा, बिहार
रचना: महेंद्र मंजरी, महेंद्र विनोद, महेंद्र चंद्रिका,
महेंद्र मंगल, अपूर्व रामायन अउरी गीत रामायन आदि

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