चढ़त उमिरिया देहियाँ अस चिकनाय - हरिराम द्विवेदी

कुछ ना कहि के रऊआँ सभ के सोझा हरिराम द्विवेदी जी के एगो काब्य रचना प्रकासित करत बानी आशा बा कि पसन परी।
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चढ़त उमिरिया देहियाँ अस चिकनाय,
टपरै नाहिं पुतरिया मन बिछलाय


बड़हनि अँखिया पातर काजर-रेख,
पिछउँड़ होइ अनियासै देहलिन देख

चितवनियाँ कुछ अइसन गइल सहेज
पानी-पानी भइलैं काठ-करेज

कब्बों तनै धनुहिया भरल कुरेध
बिना कसूरै देत हिया के बेध

जब अँखियन कै हँसी अधर तक आय
करै चुलबुली मन मसोसि रह जाय

तनिकै मुसुकिनियाँ गुड़ नियर मिठास
बेरियाँ-बेरियाँ बरबस लगै पियास

जिउ कै जरनि सुघर ई भइलीं आन
नाचै चढ़ि के आँखी साँझ-बिहान

कुछ अइसन हो गयल कि कहि नहिं जाय
अँखियन केरि ओहँइया गइल हेराय

गुदगर देहियाँ अस मदमाती चाल
छुवति चरनियाँ भुँइयाँ होय निहाल

लखी के ओनकर साँचै ढारल देह
उपजै, बाढै, पनपै बहुत सनेह

बेरि-बेरि तिकवै कै जियरा होय
इहो लगे डर जानि न पावै कोय

करीं हवाले ओनके अपने आप
सहि नहिं जाय तनिक दूरी कै ताप
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लेखक परिचय:- 

नाम: हरिराम द्विवेदी
जन्म: 12 मार्च 1936
जन्म स्थानशेरवा, मिर्जापुर, उत्तरप्रदेश
परमुख रचना: अँगनइया, पातरि पीर, जीवनदायिनी गंगा, 
साई भजनावली, पानी कहे कहानी, पहचान, नारी, रमता जोगी, 
बैन फकीर, हाशिये का दर्द, नदियो गइल दुबराय
सम्मान: साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान, 
राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा), 
साहित्य भूषण (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा), 
साहित्य सारस्वत सम्मान (हिंदी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग) तथा अन्य
अंक - 25 (28 अप्रैल 2015)
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