मुकुन्द मणि मिश्रा जी कऽ दू गो कबिता

रऊआँ सभ के सोझा मुकुन्द मणि मिश्रा जी के दू गो कबिता परस्तुत करत बानी। पहिलकी कबिता 'उड़ जा चिरई' आदमी के भीतर ढूकल स्व औरी स्वार्थ के कहानी कहत बे जेवना खाती आदमी कुछु करे के तईयार बा। बहुते बढिया ढंग से परतीक के परियोग कईल गईल बा। कबिता के भाव औरी बहाव दुनू बहुते बेजोड़ बा। दूसरकी कबिता 'बचपन के खेला' भी परतीकन से सहारे बात कहे के कोसिस करत बे लेकिन पहिलकी कबिता नियर बरियार नईखे। 
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                                 उड़ जा चिरई!

उड़ जा चिरई
दूर देश तू 
अब ना अईह 
टोला में,
गँऊआ हमर
भइल कसाई 
मार पकइहें 
घूरा में । 
तिनका -तिनका 
जोड़ बनवलू 
अंडा दिहलू 
खोंता में, 
तहरा खोंता 
आग लगा के 
भइल ठहाका 
टोला में । 
कतनो रोवबू 
लोर गिरइबू 
दया ना मानव 
चोला में ।। 
उड़ जा चिरई 
दूर देश तू 
अब ना अइह 
टोला में ।।' 
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बचपन के खेलवा

बचपन के खेलवा छिनाय गइल मीतवा।

माटी के गीतवा भुलाय गइल मीतवा।।

ओका- बोका तीन तड़ोका 

लौआ लाठी चंदन काठी

हाकी टाकी टेनिस-बैट

आइल किरकिटवा ।।बचपन.........।।

मामा हो मामा चिउंटी के झगड़ा छोड़इह हो मामा।

चिउंटी में झगड़ा ना होला हो मामा
नेतवन के झगड़ा छोड़इह हो मामा।
कान कनइठी बारे अइठी
एने बइठी होने बइठी
कट्टा- फट्टा जूता-जूती
करेले एमेले- एम -पी
रोजे कुरु सभवा दोहरावेले मामा।
देशवा के चिरवा उतारेले गामा ।।
हाय!देख-देख जियरा ई तलफेला मीतवा।
भुखवा-पियसवा भुलइले रे मीतवा।। बचपन.........।।
ए राजा !
त का पाजा
तहार घोड़ी का खाले
घास खाले घसिंगड़ खाले
पानी में के बुला खाले-
अब ना -
ना घोड़ा खाला-घोड़ी खाले
हम खानी बीबी खाले
साला खाला साली खाले
जीजा अउरी जीजी खाले
अफसर-अपराधी खाले
चारा-अलकतरा खाले
यूरिया ताबूद खाले
इन्दिरा आवास खाले
विरधा पेंशन अंत्योदय खाले
ए पी एल -बी पी एल इहो खाले
पोशाक-पोषाहार खाले
छर्री खाले छड़ खाले
बलुआ सीमेंट खाले
खेल खाले जेल खाले 
कोइला सँउस खाले
लेवी- रंगदारी खाले
माल खाले चाम खाले
उबरल-पबरल चमच्च खाले ।
बहक गइल मनवा बिगड़ रीतवा।
देशवा के हितवा ना लउके रे मीतवा।
सभत्तर सुनाता बिगाड़े वाला गीतवा।

माटी के गीतवा भुलाय गइल मीतवा। बचपन.........।।
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लेखक परिचय:- 

नाम: मुकुन्द मणि मिश्रा, 

पता: बेतिया, बिहार 
अंक - 25 (28 अप्रैल 2015)
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