बेचैन मन - गोपाल अश्क

जियरा
धक-धक
धड़क रहल बा
फर-फर
अंखियां
फरक रहल बा
देख-देख के दिन दशा
मन होखत बा बेचैन
मन बाटे बेचैन।

आसमान
झुकत बा जइसे
लागत बा
मनवा के अइसे
धरती बिया बदलत करवट
कांप रहल बा चैन
मन बाटे बेचैन।

केतना-केतना
बेर पुकारीं
कब ले
मन के रखीं केवाड़ी
खोल के सजना तुहें बताव
काटीं कइसे दिन रैन
मन बाटे बेचैन।

जिनिगी
चौखट पर खड़ियाइल
मउअत के, बाटे मुरझाइल
अइसे कइसे जीवन बीती
मिली कइसे सुख नैन
मन बाटे बेचैन।
--------------
गोपाल अश्क

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.