हाइकु - प्रदीप कुमार दाश 'दीपक'

1.

बह जाये दीं
ई लोर वे धो देई
मन के मैल। 

(बह जाने दें
ये आँसू ही धोते हैं
मन के मैल।)
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2.

आवऽ तूरेला
रुढ़ियन के आकाश 
फइले लागल।

(आओ तोड़ने
रुढ़ियों का आकाश
लगा फैलने।)
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3.

दुल्हा बनलीं
आ हमार इयाद
बनली दुल्हन।

(दुल्हा बना हूँ
और स्मृतियाँ मेरी
बनी दूल्हन।)
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4.

झरल मोती
मुस्का रहल मेघ
सावन आइल। 

(झरी मोतियाँ
मुस्का रहा बादल
सावन आया।)
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5.

बता द तू
शान्ति खोजत बानी
कहाँ भेंटाई? 

(बता दो तुम
शान्ति ढूँढ रहा हूँ
कहाँ मिलेगी?)
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6.

हमार पीर
ना बेध सकेल
ई अभेद्य वा। 

(पीड़ाएँ मेरी
भेद पाओगे नहीं
ये हैं अभेद्य।)
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7.

ज्ञान के सुरुज
अज्ञान के अन्हार
दूर करेला। 

(ज्ञान का सूर्य
अज्ञान का अंधेरा
करता दूर।)
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8.

व्यवस्था ढाँचा 
ढलल ना दिल
टूटे लागल। 

(व्यवस्था साँचा
ढल न पाया उर
टूटने लगा।)
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प्रदीप कुमार दाश 'दीपक'
अनुवादक : सूर्यदेव पाठक "पराग" 











मैना: वर्ष - 7 अंक - 117 (जनवरी - मार्च 2020)

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